।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल पंचमीवि.सं.२०७१मंगलवार
सत्संगकी आवश्यकता



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
मीराँबाई भजन करती हुई डरती नहीं हैं । इतनी आफत होनेपर भी भजन करती हैं‒
राणाजी   म्हें   तो    गोबिन्द   का   गुण   गास्याँ ।
हरिमंदिर में निरत करास्याँधूँधरिया घमकास्याँ ॥

स्त्री-जातिबड़े घरानेमें पैदा हुईपरदेमें रहीपरदेमें ब्याही गयी‒वह मीराँबाई निधड़क होकर अकेले ही मेड़तेसे द्वारिका चली गयी ! डर है ही नहीं मनमें । ये जो पुरुष बैठे हैंइनको घरसे निकाल दिया जाय तो इनको मुश्किल हो जायभीतरमें खलबली मच जाय कि कहाँ रहेंगे क्या खायेंगे परन्तु स्त्री-जाति होनेपर भी मीराँबाईको भगवान्‌का भरोसा है‒
मेरे तो गिरधर गोपालदूसरो न कोई ।
जाके सिर मोर-मुकुटमेरो पति सोई ॥

जो सब संसारका पालन-पोषण करनेवाला हैवह क्या भक्तोंकी उपेक्षा कर सकता है ‘यो हि विश्वम्भरो देवः स भक्तान् किमुपेक्षते ।’ अतः किसीसे डरनेकीचिन्ता करनेकी जरूरत नहीं है । सत्संग आदिके लिये कोई मना करे तो साफ कह देना चाहिये कि आपकी यह बात मैं नहीं मानूँगीक्योंकि इसमें आपका अहित है और आपका अहित मेरेको अभीष्ट नहीं है । सत्संगभजनध्यान निःशंक होकर,निधड़क होकर करो । हाँ, दिखावटी भजन नहीं करना है,दम्भ नहीं करना है ।

भीतरमें और बात तथा बाहरमें और बात‒यह नहीं होना चाहिये‒‘ऊपर मीठी बात, कतरनी काँखमें । आग बुझी मत जान, दबी है राखमें ।’ ऊपरसे मीठी बात करना और भीतरमें कपट रखना‒यह बहुत खराब है !
क्यूँ खोदे तू खाडो रे ।
तू तो जाणे दूजो पड़सीआसी थारे आडो रे ॥

इसलिये बड़ी सावधानीसे जीवन पवित्र बनाओ,सुन्दर बनाओ । भगवान्‌के सम्मुख हो जाओफिर डरनेकी जरूरत नहीं । हम त्रिलोकीनाथ परमात्माके सम्मुख हैंफिर डर किस बातका परन्तु उद्दण्डताउच्छंखलता नहीं करनी हैकटु बर्ताव नहीं करना है । बड़े प्रेमकाआदरका बर्ताव करना है । कारण कि प्रेमका बर्ताव करनेसे आपका भाव शुद्धनिर्मल होगाजिसका भगवान्‌परसन्त-महात्माओंपर असर पड़ेगा । वे आपके पक्षमें होंगे ।

सत्संगका मौका बहुत कम मिलता है‒
              तात मिलै पुनि मात मिलै सुत भात मिलै युवती सुखदाई ।
              राज मिलै गज-बाजि मिलै सब साज मिलै मनवांछित पाई ॥
              लोक मिलै सुरलोक मिलै बिधिलोक मिलै बैकुंठहु जाई ।
              ‘सुन्दर’ और मिलै सब ही सुख संत समागम दुर्लभ भाई ॥

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे