।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशीवि.सं.२०७१सोमवार
भीमसेनी निर्जला एकादशी-व्रत
ममताका त्याग




प्राप्त वस्तुओंमें ममता होती है और अप्राप्त वस्तुओंकी कामना होती है । अतः जो प्राप्त हैउनमें ममता न रखें और नयी कामना न करें तो इतनेमात्रसे जीवन्मुक्ति है । जिसको मुक्ति कहते हैंजिसको दुर्लभ पद कहा हैजिसको ऋषि-मुनिसन्त-महात्मा प्राप्त हुए हैंजिसको अक्षर कहते हैं‒‘यदक्षरं वेदविदो वदन्ति’जिसकी प्राप्तिकी इच्छासे ब्रह्मचारीलोग ब्रह्मचर्यका पालन करते हैं‒‘यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति’जिसको वीतराग पुरुष प्राप्त होते हैं‒‘विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः’उस परमपदकी प्राप्ति हो जाय केवल इतनी बातसे कि मिली हुई वस्तुमें ममता न करें और जो न मिला हो उसकी कामना न करें !

मिली हुई वस्तुओंको आप नष्ट कर दोफेंक दोजला दो‒यह नहीं कहता मैं । वस्तुएँ हैं जैसे ही रहेंपर उनमें मेरा-पन न रखें । उनके रहते हुए मेरा-पन कैसे न रखें ? देखो,आपलोगोंके अनुभवकी बात है । आप उसको काममें लेते ही हैं । जैसेआपके मनमें कन्यादान करनेकी इच्छा हुई और आपने कन्यादान कर दिया । विवाह कर देनेके बाद कन्यामें आपकी वैसी ममता नहीं रहती । आपकी पुत्री थी और आप भी कहते थे कि मेरी कन्या हैपरन्तु विवाह होनेके बाद क्या वैसी ममता है तो आपको ममता छोड़ना आता है न ?ध्यान दो इस बातपर ।

श्रोता‒कन्याकी ममता तो बिना प्रयास ही छूट जाती हैपरन्तु वस्तुओंकी ममता तो प्रयाससे भी नहीं छूटती !

स्वामीजी‒कन्याकी ममता भी बहुत प्रयाससे छूटती है महाराज ! उसको छोड़नेमें खर्चा लगता हैभाई-बन्धुओं,सम्बन्धियोंकुटुम्बियों आदि कइयोंकी गरज करनी पड़ती है ! इतना तो वस्तुओंकी ममता छोड़नेमें नहीं करना पड़ता । मैं तो कहता हूँ कि वस्तुओंके पासमें रहते हुए उनकी ममता छोड़ दो । उनकी ममता छोड़नेमें न तो आदमियोंको बुलाना पड़ेगान भोजन कराना पड़ेगान घरको सजाना पड़ेगा,कुछ भी नहीं करना पड़ेगा ! कन्याके विवाहमें कितना जोर आता है ! लखपतियों-करोड़पतियोंको चिन्ता लग जाती है । परन्तु ऐसी कठिनता लेकर भी आप कन्याकी ममता सुगमतापूर्वक छोड़ देते होतो फिर इस ममताको छोड़नेमें क्या जोर आता है आपको ?

दूसरी बात बताऊँ ! जैसेआप मेरेको कपड़ा देना चाहो और मैंने कपड़ा ले लिया तो आपकी ममता छूटी कि नहीं छूटी तो आपको ममता छोड़ना आता है न कन्या देना बड़ा दान हुआछोटा-सा कपड़ा देना छोटा दान हुआ । दान छोटा हो या बड़ाइसमें कोई फर्क नहीं पड़ता । अपनापन छोड़ना ही खास है । छोटी-बड़ी वस्तु देनेका मूल्य नहीं हैमूल्य तो ममता छोड़नेका हैक्योंकि मुक्ति ममता छोड़नेसे होती है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे