।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशीवि.सं.२०७१गुरुवार
कर्म-रहस्य



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 कर्मोंमें मनुष्यके प्रारब्धकी प्रधानता है या पुरुषार्थकी अथवा प्रारब्ध बलवान् है या पुरुषार्थ ?‒इस विषयमें बहुत-सी शंकाएँ हुआ करती हैं । उनके समाधानके लिये पहले यह समझ लेना जरूरी है कि प्रारब्ध और पुरुषार्थ क्या है ?

मनुष्यमें चार तरहकी चाहना हुआ करती है‒एक धनकीदूसरी धर्मकीतीसरी भोगकी और चौथी मुक्तिकी । प्रचलित भाषामें इन्हीं चारोंको अर्थधर्मकाम और मोक्षके नामसे कहा जाता है‒

(१) अर्थ‒धनको ‘अर्थ’ कहते हैं । वह धन दो तरहका होता है‒स्थावर और जंगम । सोनाचाँदीरुपयेजमीन,जायदादमकान आदि स्थावर हैं और गायभैंसघोड़ाऊँट,भेड़ बकरी आदि जंगम हैं ।

(२) धर्म‒सकाम अथवा निष्कामभावसे जो यज्ञ,तपदानव्रततीर्थ आदि किये जाते हैंउसको ‘धर्म’ कहते हैं ।

(३) काम‒सांसारिक सुख-भोगको ‘काम’ कहते हैं । वह सुखभोग आठ तरहका होता है‒शब्दस्पर्शरूपरस,गन्धमानबड़ाई और आराम ।

(क) शब्द‒शब्द दो तरहका होता है‒वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक । व्याकरणकोशसाहित्यउपन्यासगल्प,कहानी आदि ‘वर्णात्मक’* शब्द हैं । खालतार और फूँकके तीन बाजे और तालका आधा बाजा‒ये साढ़े तीन प्रकारके बाजे ‘ध्वन्यात्मक’ शब्दको प्रकट करनेवाले हैं । इन वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक शब्दोंको सुननेसे जो सुख मिलता हैवह शब्दका सुख है ।

(ख) स्पर्श‒स्त्रीपुत्रमित्र आदिके साथ मिलनेसे तथा ठण्डागरमकोमल आदिसे अर्थात् उनका त्वचाके साथ संयोग होनेसे जो सुख होता हैवह स्पर्शका सुख है ।

(ग) रूप‒नेत्रोंसे खेलतमाशासिनेमाबाजीगरी,वनपहाड़ सरोवरमकान आदिकी सुन्दरताको देखकर जो सुख होता हैवह रूपका सुख है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कर्म-रहस्य’ पुस्तकसे

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* वर्णात्मक शब्दमें भी दस रस होते हैं‒शृंगारहास्यकरुण,रौद्रवीरभयानकवीभत्सअद्भुतशान्त और वात्सल्य । ये दसों ही रस चित्त द्रवित होनेसे होते हैं । इन दसों रसोंका उपयोग भगवान्‌के लिये किया जाय तो ये सभी रस कल्याण करनेवाले हो जाते हैं और इनसे सुख भोगा जाय तो ये सभी रस पतन करनेवाले हो जाते हैं ।

        ढोलढोलकीतबलापखावजमृदंग आदि ‘खाल’ केसितार,सारंगीमोरचंग आदि ‘तार’ केमशकपेटी (हारमोनियम)बाँसुरी,पूँगी आदि ‘फूँक’ के और झाँझमंजीराकरताल आदि ‘ताल’ के बाजे हैं ।