।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
श्रावण कृष्ण चतुर्थीवि.सं.२०७१बुधवार
देवता कौन ?



(गत ब्लॉगसे आगेका)
 प्रश्न‒क्या देवोपासना सबके लिये आवश्यक है ?

उत्तर‒जैसे प्राणिमात्रको ईश्वरका स्वरूप मानकर आदर-सत्कार करना चाहियेऐसे ही देवताओंको ईश्वरका स्वरूप मानकर उनकी तिथिके अनुसार उनका पूजन करना गृहस्थ और वानप्रस्थके लिये आवश्यक है । परन्तु उनका पूजन कोई भी कामना न रखकरकेवल भगवान् और शास्त्रकी आज्ञा मानकर ही किया जाना चाहिये ।

प्रश्न‒देवोपासना करनेसे क्या लाभ है ?

उत्तर‒निष्कामभावसे देवताओंका पूजन करनेसे अन्तःकरणकी शुद्धि होती है और वे देवता यज्ञ (कर्तव्यकर्म) की सामग्री भी देते हैं । उस सामग्रीका सदुपयोग करके मनुष्य मनोऽभिलषित वस्तुकी प्राप्ति कर सकते हैं ।[*]

प्रश्न‒क्या देवोपासना करनेसे मुक्ति हो सकती है ?

उत्तर‒देवताओंको भगवान्‌का स्वरूप समझकर निष्कामभावसे उपासना करनेसे मुक्ति हो सकती है । मृत्यु-लोकमें भी पुत्र माता-पिताकोपत्नी पतिको ईश्वर मानकर उनकी निष्कामभावसे सेवा करे तो भगवत्प्राप्ति हो सकती है । यदि सम्पूर्ण प्राणियोंमें ईश्वरभाव करके निष्कामभावसे केवल भगवत्प्राप्तिके उद्देश्यसे उनकी सेवाआदरपूजन किया जाय तो उससे भी भगवत्प्राप्ति हो सकती है ।

अगर सकामभावसे देवोपासना की जाय तो उससे मुक्ति नहीं होगी । हाँ, देवोपासनासे कामनाओंकी पूर्ति हो जायगी और उसका अधिक-से-अधिक यह फल होगा कि उन देवताओंके लोकोंकी प्राप्ति हो जायगी‒‘यान्ति देवव्रता देवान् (गीता ९ । २५) ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे

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[*] काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः ।
                                                   क्षिप्रं हि मानुषे लोके  सिद्धिर्भवति  कर्मजा ॥
                                                                                                 (गीता ४ । १२)

‘कर्मोंकी सिद्धि (फल) चाहनेवाले मनुष्य देवताओंकी उपासना किया करते हैंक्योंकि इस मनुष्यलोकमें कर्मोंसे उत्पन्न होनेवाली सिद्धि जल्दी मिल जाती है ।’

   †  यतः  प्रवृत्तिर्भूतानां    येन  सर्वमिदं  ततम् ।
         स्वकर्मणा तमभर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः ॥
                                                                                                 (गीता १८ । ४६)

             ‘जिस परमात्मासे सम्पूर्ण प्राणियोंकी उत्पत्ति होती है और जिससे यह सम्पूर्ण संसार व्याप्त हैउस परमात्माका अपने कर्मके द्वारा पूजन करके मनुष्य सिद्धिको प्राप्त हो जाता है ।’