।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल द्वितीयावि.सं.२०७१सोमवार
श्रावण सोमवार-व्रत
दुर्गतिसे बचो



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
(४) पितरोंके भक्त पितरोंका पूजन करते हैं और इसके फलस्वरूप वे पितरोंको प्राप्त होते हैं अर्थात् पितृलोकमें चले जाते हैंपितॄन्यान्ति पितृवताः (९ । २५) । (परंतु यदि वे निष्कामभावसे कर्तव्य समझकर पितरोंका पूजन करते हैं, तो वे मुक्त हो जाते हैं ।)

(५) राजस मनुष्य यक्ष-राक्षसोंका पूजन करते हैं (१७ । ४) और फलस्वरूप यक्ष-राक्षसोंको प्राप्त होते हैं अर्थात् उनकी योनिमें चले जाते हैं٭

(६) तामस पुरुष भूत-प्रेतोंका पूजन करते हैं (१७ । ४) । भूत-प्रेतोंका पूजन करनेवाले भूत-प्रेतोंको प्राप्त होते हैं अर्थात् उनकी योनिमें चले जाते हैं‒‘भूतानि यान्ति भूतेज्या’ (९ । २५)

गीतामें निष्कामभावसे मनुष्य, देवता, पितर, यक्ष-राक्षस आदिकी सेवा, पूजन करनेका निषेध नहीं किया गया है, प्रत्युत निष्कामभावसे सबकी सेवा एवं हित करनेकी बड़ी महिमा गायी गयी है (५ । २५, ६ । ३२, १२ । ४) । तात्पर्य है कि निष्कामभावपूर्वक और शास्त्रकी आज्ञासे केवल देवताओंकी पुष्टिके लिये, उनकी उन्नतिके लिये ही कर्तव्य-कर्म, पूजा आदि की जाय, तो उससे मनुष्य बँधता नहीं, प्रत्युत परमात्माको प्राप्त हो जाता है (३ । ११) । ऐसे ही निष्कामभावपूर्वक और शास्त्रकी आज्ञासे कर्तव्य समझकर पितरोंकी तृप्तिके लिये श्राद्ध-तर्पण किया जाय, तो उससे परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है । यक्ष-राक्षस, भूत-प्रेत आदिके उद्धारके लिये, उन्हें सुख-शान्ति देनेके लिये निष्कामभावपूर्वक और शास्त्रकी आज्ञासे उनके नामसे गया-श्राद्ध करना, भागवत-सप्ताह करना, दान करना, भगवन्नामका जप-कीर्तन करना, गीता-रामायण आदिका पाठ करना आदि-आदि किये जायँ, तो उनका उद्धार हो जाता है, उनको सुख-शान्ति मिलती है और साधकको परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है । उन देवता, पितर, यक्ष-राक्षस, भूत-प्रेत आदिको अपना इष्ट मानकर सकामभावपूर्वक उनकी उपासना करना ही खास बन्धनका कारण है; जन्म-मरणका, अधोगतिका कारण है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘दुर्गतिसे बचो’ पुस्तकसे

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٭ गीतामें भगवान्‌ने यक्ष-राक्षसोंके पूजनका तो वर्णन कर दिया‒‘यक्षरक्षांसि राजसाः’ (१७ । ४), पर उनके पूजनके फलका वर्णन नहीं किया । अतः यहाँ ऐसा समझना चाहिये कि जैसे देवताओंका पूजन करनेवाले देवताओंको ही प्राप्त होते हैं (९ । २५), ऐसे ही यक्ष-राक्षसोंका पूजन करनेवाले यक्ष-राक्षसोंको ही प्राप्त होते हैं । कारण कि यक्ष-राक्षस भी देवयोनि होनेसे देवताओंके ही अन्तर्गत आते हैं ।