।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ शुक्ल षष्ठीवि.सं.२०७१गुरुवार
श्रीस्कन्दषष्ठी-व्रत
कर्म-रहस्य



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 पाप-पुण्यके इस लौकिक और पारलौकिक फलके विषयमें एक बात और समझनेकी है कि जिन पापकर्मोंका फल यहीं कैदजुर्मानाअपमाननिन्दा आदिके रूपमें भोग लिया हैउन पापोंका फल मरनेके बाद भोगना नहीं पड़ेगा ।परन्तु व्यक्तिके पाप कितनी मात्राके थे और उनका भोग कितनी मात्रामें हुआ अर्थात् उन पाप कर्मोंका फल उसने पूरा भोगा या अधूरा भोगा‒इसका पूरा पता मनुष्यको नहीं लगताक्योंकि मनुष्यके पास इसका कोई माप-तौल नहीं है । परन्तु भगवान्‌को इसका पूरा पता हैअतः उनके कानूनके अनुसार उन पापोंका फल यहाँ जितने अंशमें कम भोगा गया हैउतना इस जन्ममें या मरनेके बाद भोगना ही पड़ेगा । इसलिये मनुष्यको ऐसी शंका नहीं करनी चाहिये कि मेरा पाप तो कम था पर दण्ड अधिक भोगना पड़ा अथवा मैंने पाप तो किया नहीं पर दण्ड मुझे मिल गया ! कारण कि यह सर्वज्ञसर्वसुहृद्सर्वसमर्थ भगवान्‌का विधान है कि पापसे अधिक दण्ड कोई नहीं भोगता और जो दण्ड मिलता हैवह किसी-न-किसी पापका ही फल होता है* 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कर्म-रहस्य’ पुस्तकसे

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* एक सुनी हुई घटना है । किसी गाँवमें एक सज्जन रहते थे । उनके घरके सामने एक सुनारका घर था । सुनारके पास सोना आता रहता था और वह गढ़कर देता रहता था । ऐसे वह पैसे कमाता था । एक दिन उसके पास अधिक सोना जमा हो गया । रात्रिमें पहरा लगानेवाले सिपाहीको इस बातका पता लग गया । उस पहरेदारने रात्रिमें उस सुनारको मार दिया और जिस बक्सेमें सोना थाउसे उठाकर चल दिया । इसी बीच सामने रहनेवाले सज्जन लघुशंकाके लिये उठकर बाहर आये । उन्होंने पहरेदारको पकड़ लिया कि तू इस बक्सेको कैसे ले जा रहा है ? तो पहरेदारने कहा‒‘तू चुप रह हल्ला मत कर । इसमेंसे कुछ तू ले ले और कुछ मैं ले लूँ ।’ सज्जन बोले‒‘मैं कैसे ले लूँ मैं चोर थोड़े ही हूँ !’ पहरेदारने कहा‒‘देखतू समझ जामेरी बात मान लेनहीं तो दुःख पायेगा ।’ पर वे सज्जन माने नहीं । तब पहरेदारने बक्सा नीचे रख दिया और उस सज्जनको पकड़कर जोरसे सीटी बजा दी । सीटी सुनते ही और जगह पहरा लगानेवाले सिपाही दौड़कर वहाँ आ गये । उसने सबसे कहा कि ‘यह इस घरसे बक्सा लेकर आया है और मैंने इसको पकड़ लिया है ।’ तब सिपाहियोंने घरमें घुसकर देखा कि सुनार मरा पड़ा है । उन्होंने उस सज्जनको पकड़ लिया और राजकीय आदमियोंके हवाले कर दिया । जजके सामने बहस हुई तो उस सज्जनने कहा कि ‘मैंने नहीं मारा हैउस पहरेदार सिपाहीने मारा है ।’ सब सिपाही आपसमें मिले हुए थेउन्होंने कहा कि ‘नहीं इसीने मारा हैहमने खुद रात्रिमें इसे पकड़ा है,’ इत्यादि ।

          मुकदमा चला । चलते-चलते अन्तमें उस सज्जनके लिये फाँसीका हुक्म हुआ । फाँसीका हुक्म होते ही उस सज्जनके मुखसे निकला‒‘देखोसरासर अन्याय हो रहा है ! भगवान्‌के दरबारमें कोई न्याय नहीं ! मैंने मारा नहींमुझे दण्ड हो और जिसने मारा हैवह बेदाग छूट जायजुर्माना भी नहींयह अन्याय है !’ जजपर उसके वचनोंका असर पड़ा कि वास्तवमें यह सच्चा बोल रहा हैइसकी किसी तरहसे जाँच होनी चाहिये । ऐसा विचार करके उस जजने एक षड्‌यन्त्र रचा । (आगेके ब्लॉगमें)