।। श्रीहरिः ।।
 
तुमको लाखों प्रणाम....!!

हरि का नाम जपानेवाले, हरि का नाम जपानेवाले,
गीता पाठ पढ़ानेवाले, गीता रहस्य बतानेवाले,
जग की चाह छुड़ानेवाले, प्रभु से संबंध जुड़ानेवाले,
प्रभुकी याद दिलानेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥टेक॥
जग में महापुरुष नहिं होते, सिसक सिसक कर सब ही रोते,
आँसू पोंछनेवाले, सबका आँसू पोंछनेवाले,
सबकी पीड़ा हरनेवाले, सबकी जलन मिटानेवाले,
सबको गले लगानेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥१॥
जनम मरन के दुख से मारे, भटक रहे हैं लोग बिचारे,
पथ दरशानेवाले, प्रभु का पथ दरशानेवाले,
प्रभु का मार्ग दिखानेवाले, सत का संग करानेवाले,
हरि के सनमुख करनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥२॥
उच्च नीच जो भी नर नारी, संशय हरनेवाले, सबका संशय हरनेवाले,
सबका भरम मिटानेवाले, सबकी चिन्ता हरनेवाले,
सबको आसिस देनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥३॥
हम तो मूरख नहीं समझते, संतन का आदर नहिं करते,
नित समझानेवाले, हमको नित समझानेवाले,
हमसे नहिं उकतानेवाले, हमपर क्रोध करनेवाले,
हमपर किरपा करनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥४॥
अब तो भवसागर से तारों, शरण पड़े हम बेगि उबारो,
पार लगानेवाले, हमको पार लगानेवाले,
हमको पवित्र करनेवाले, हमपर करुणा करनेवाले,
हमको अपना कहनेवाले, तुमको लाखों परनाम ॥५॥

अन्तिम प्रवचन

(ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजके आषाढ़ कृष्ण द्वादशी, विक्रम सम्वत-२०६२, तदनुसार ३ जुलाई, २००५ को परमधाम पधारनेके पूर्व दिनांक २९-३० जून, २००५ को गीताभवन, स्वर्गाश्रममें दिया गया अन्तिम प्रवचन)

       एक बहुत श्रेष्ठ, बड़ी सुगम, बड़ी सरल बात है । वह यह है कि किसी तरहकी कोई इच्छा मत रखो । न परमात्माकी, न आत्माकी, न संसारकी, न मुक्तिकी, न कल्याणकी, कुछ भी इच्छा मत करो और चुप हो जाओ । शान्त हो जाओ । कारण कि परमात्मा सब जगह शान्तरूपसे परिपूर्ण है । स्वतः-स्वाभाविक सब जगह परिपूर्ण है । कोई इच्छा न रहे, किसी तरहकी कोई कामना न रहे तो एकदम परमात्माकी प्राप्ति हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, पूर्णता हो जाय !

       यह सबका अनुभव है कि कोई इच्छा पूरी होती है, कोई नहीं होती । सब इच्छाएँ पूरी हो जायँ यह नियम नहीं है । इच्छाओंका पूरा करना हमारे वशकी बात नहीं है, पर इच्छाओंका त्याग करना हमारे वशकी बात है । कोई भी इच्छा, चाहना नहीं रहेगी तो आपकी स्थिति स्वतः परमात्मामें होगी । आपको परमात्मतत्त्वका अनुभव हो जायगा । कुछ चाहना नहीं, कुछ करना नहीं, कहीं जान नहीं, कहीं आना नहीं, कोई अभ्यास नहीं । बस, इतनी ही बात है । इतनेमें ही पूरी बात हो गयी ! इच्छा करनेसे ही हम संसारमें बँधे हैं । इच्छा सर्वथा छोड़ते ही सर्वत्र परिपूर्ण परमात्मामें स्वतः-स्वाभाविक स्थिति है ।

         प्रत्येक कार्यमें तटस्थ रहो । न राग करो, न द्वेष करो ।

तुलसी ममता राम सों,     समता सब संसार ।
राग न रोष न दोष दुख, दास भए भव पार ॥

      एक क्रिया है और एक पदार्थ है । क्रिया और पदार्थ यह प्रकृति है । क्रिया और पदार्थ दोनोंसे संबंध-विच्छेद करके एक भगवान्‌के आश्रित हो जायँ । भगवान्‌के शरण हो जायँ, बस । उसमें आपकी स्थिति स्वतः है । ‘भूमा अचल शाश्वत अमल सम ठोस है तू सर्वदा’‒ ऐसे परमात्मामें आपकी स्वाभाविक स्थिति है । स्वप्नमें एक स्त्रीका बालक खो गया । वह बड़ी व्याकुल हो गयी । पर जब नींद खुली तो देखा कि बालक तो साथमें ही सोया है‒ तात्पर्य है कि जहाँ आप हैं, वहाँ परमात्मा पूरे-के-पूरे विद्यमान है । आप जहाँ हैं, वहीं चुप हो जाओ !!

‒२९ जून २००५, सायं लगभग ४ बजे
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     श्रोता‒कल आपने बताया कि कोई चाहना न रखे । इच्छा छोड़ना और चुप होना दोनोंमें कौन ज्यादा फायदा करता है ?

    स्वामीजी‒मैं भगवान्‌का हूँ, भगवान्‌ मेरे हैं, मैं और किसीका नहीं हूँ, और कोई मेरा नहीं है । ऐसा स्वीकार कर लो । इच्छारहित होना और चुप होना‒दोनों बातें एक ही हैं । इच्छा कोई करनी ही नहीं है, भोगोंकी, न मोक्षकी, न प्रेमकी, न भक्तिकी, न अन्य किसीकी ।

       श्रोता‒इच्छा नहीं करनी है, पर कोई काम करना हो तो ?

     स्वामीजी‒काम उत्साहसे करो, आठों पहर करो, पर कोई इच्छा मत करो । इस बातको ठीक तरहसे समझो । दूसरोंकी सेवा करो, उनका दुःख दूर करो, पर बदलेमें कुछ चाहो मत । सेवा कर दो और अन्तमें चुप हो जाओ । कहीं नौकरी करो तो वेतन भले ही ले लो, पर इच्छा मत करो ।

      सार बात है कि जहाँ आप हैं, वहीं परमात्मा हैं । कोई इच्छा नहीं करोगे तो आपकी स्थिति परमात्मामें ही होगी । जब सब परमात्मा ही हैं तो फिर इच्छा किसकी करें ? संसारकी इच्छा है, इसलिये हम संसारमें हैं । कोई भी इच्छा नहीं है तो हम परमात्मामें हैं ।

‒ ३० जून २००५, दिनमें लगभग ११ बजे

‒ ‘एक सन्तकी वसीयत’ पुस्तकसे

(सन्तोंके वचनों, उपदेशोंके अनुसार अपना जीवन बन जाय‒यही उनके प्रति अपनी सही अर्थमें स्मृति-पुष्पांजलि, कृतज्ञता है । अतः हम सब स्वामीजी महाराजके वचन दृढ़तापूर्वक स्वीकार करके अपना जीवन सफल बनायें )