।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण तृतीयावि.सं.२०७१बुधवार
बहुलाव्रत, कज्जली तृतीया
दुर्गतिसे बचो



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 देवतापितरऋषिमुनिमनुष्य आदिमें भगवद्‌बुद्धि हो और निष्कामभावपूर्वक केवल उनकी पुष्टिके लियेउनके हितके लिये ही उनकी सेवा-पूजा की जाय तो भगवान्‌की प्राप्ति हो जाती है । इन देवता आदिको भगवान्‌से अलग मानना और अपना सकामभाव रखना ही पतनका कारण है ।

भूतप्रेतपिशाच आदि योनि ही अशुद्ध है और उनकी पूजा-विधि सामग्रीआराधना आदि भी अत्यन्त अपवित्र है । इनका पूजन करनेवाले इनमें न तो भगवद्‌बुद्धि कर सकते हैं और न निष्कामभाव ही रख सकते हैं । इसलिये उनका तो सर्वथा पतन ही होता है । इस विषयमें थोड़े वर्ष पहलेकी एक सच्ची घटना है । कोई ‘कर्णपिशाचिनी’ की उपासना करनेवाला था । उसके पास कोई भी कुछ पूछने आता तो वह उसके बिना पूछे ही बता देता कि यह तुम्हारा प्रश्न है और यह उसका उत्तर है । इससे उसने बहुत रुपये कमाये ।

अब उस विद्याके चमत्कारको देखकर एक सज्जन उसके पीछे पड़ गये कि ‘मेरेको भी यह विद्या सिखाओमैं भी इसको सीखना चाहता हूँ ।’ तो उसने सरलतासे कहा कि ‘यह विद्या चमत्कारी बहुत हैपर वास्तविक हितकल्याण करनेवाली नहीं है ।’ उससे यह पूछा गया कि ‘आप दूसरेके बिना कहे ही उसके प्रश्नको और उत्तरको कैसे जान जाते हो?’ तो उसने कहा कि ‘मैं अपने कानमें विष्ठा लगाये रखता हूँ । जब कोई पूछने आता हैतो उस समय कर्णपिशाचिनी आकर मेरे कानमें उसका प्रश्न और प्रश्रका उत्तर सुना देती है और मैं वैसा ही कह देता हूँ ।’ फिर उससे पूछा गया कि ‘आपका मरना कैसा होगा’इस विषयमें आपने कुछ पूछा है कि नहीं इसपर उसने कहा कि ‘मेरा मरना तो नर्मदाके किनारे होगा’ । उसका शरीर शान्त होनेके बाद पता लगा कि जब वह (अपना अन्त-समय जानकर) नर्मदामें जाने लगा,तब कर्णपिशाचिनी सूकरी बनकर उसके सामने आ गयी । उसको देखकर वह नर्मदाकी तरफ भागातो कर्णपिशाचिनीने उसको नर्मदामें जानेसे पहले ही किनारेपर मार दिया । कारण यह था कि अगर वह नर्मदामें मरता तो उसकी सद्‌गति हो जाती । परन्तु कर्णपिशाचिनीने उसकी सद्‌गति नहीं होने दी और उसको नर्मदाके किनारेपर ही मारकर अपने साथ ले गयी ।

इसका तात्पर्य यह हुआ कि देवतापितरआदिकी उपासना स्वरूपसे त्याज्य नहीं हैपरन्तु भूतप्रेतपिशाच आदिकी उपासना स्वरूपसे ही त्याज्य है । कारण कि देवताओंमें भगवद्भाव और निष्कामभाव हो तो उनकी उपासना भी कल्याण करनेवाली है । परन्तु भूतप्रेत आदिकी उपासना करनेवालोंकी कभी सद्गति होती ही नहींदुर्गति ही होती है ।

हाँ, पारमार्थिक साधक भूत-प्रेतोंके उद्धारके लिये उनका श्राद्ध-तर्पण कर सकते हैं । कारण कि उन भूत-प्रेतोंको अपना इष्ट मानकर उनकी उपासना करना ही पतनका कारण है । उनके उद्धारके लिये श्राद्ध-तर्पण करना अर्थात् उनको पिण्ड-जल देना कोई दोषकी बात नहीं है । सन्त-महात्माओंके द्वारा भी अनेक भूत-प्रेतोंका उद्धार हुआ है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘दुर्गतिसे बचो’ पुस्तकसे