।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण सप्तमीवि.सं.२०७१रविवार
श्रीकृष्णजन्माष्टमीव्रत
नाम-महिमा



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
नामकी तो अपार असीम महिमा है । वह नाम हर समय लिया जा सकता है । काम-धन्धा करते हुएउठते-बैठतेसोते-जागतेखाते-पीते आदि हर समयमें भगवान्‌का नाम लिया जा सकता है । चैतन्य महाप्रभु कहते हैं‒भगवान्‌ने नाममें अपनी पूरी-की-पूरी शक्ति (महिमा) रख दी है और इसमें विलक्षणता यह है कि इसके लेनेमें कोई समय नहीं बाँधा गया है कि अमुक समयमें नाम ले सकते होउसके सिवाय नहींप्रत्युत भगवान्‌ने तो नाम लेनेमें सब समय छूट दे रखी है । नामको तो सुबहशामदोपहररात्रि‒हर समय ले सकते हैं‒
                        नाम्नामकारि बहुधा निजसर्वशक्ति-
                                स्तत्रार्पितानियमितः स्मरणे न कालः ।
                        एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि
                                दुर्दैवमीदृशमिहाजनि        नानुरागः ॥

कई लोग कहते हैं कि क्या करेंहमारे नाम लेना लिखा नहीं है । सज्जनो ! अभी नाम-जप करके नाम लिखा लोइसमें देरीका काम नहीं है । इसका दफ्तर हर समय खुला हैकभी करो । दिनमेंरातमेंसुबहमेंशाममें,सम्पत्तिमेंविपत्तिमेंसुखमेंदुःखमें आप भगवान्‌का नाम लें तो अभी लिखा जायगा और नामकी पूँजी हो जायगी । अब नामको भूल न जायँ, इसका खयाल रखना है । उसके लिये एक उपाय बतायें । आपलोग ध्यान देकर सुनें । आपलोग मन-ही-मन भगवान्‌को प्रणाम करके उनसे यह प्रार्थना करें‒‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहींहे प्रभो ! आपको मैं भूलूँ नहीं’ऐसा मिनट-मिनटआधे-आधे मिनटमें आप कहते रहो । नींद खुले तबसे लेकर गाढ़ी नींद न आ जाय तबतक ‘हे प्रभो ! आपको मैं भूलूँ नहीं ।’ ऐसा कहते रहो । राम-राम-राम कहते हुए साथमें कह दें‒‘हे नाथ ! मैं भूलूँ नहीं ।’

जब आप राम-राम-राम कह रहे हैंराम-राम-राम कहते हुए भी मनसे दूसरी बात याद आ जाती हैउस समय हम भगवान्‌को भूल जाते हैं तो भगवान्‌से कहो‒‘हे नाथ ! मैं भूलूँ नहींहे प्रभो ! भूलूँ नहीं । हे नाथ ! मैं आपका नाम लेता रहूँ और आपको भूलूँ नहीं ।’ भगवान्‌से ऐसी प्रार्थना करते रहो तो भगवान्‌की कृपासे यह भूल मिट जायगी । भजन होने लगेगा । फिर अखण्ड भजन होगाअखण्ड ! ‘ताली लागी नामसे और पड्यो समँदसे सीर’ भगवान्‌के नामकी धुन लग जायगी । फिर आपको भीतर स्मरण करनेका उद्योग नहीं करना पड़ेगा । स्वतः ही भगवान्‌की कृपासे भजन चलेगा । परन्तु पहले आप नाम लेनेकी चेष्टा करो और भगवान्‌से प्रार्थना करो ।

कोई १९६०‒६५ विक्रम संवत्‌की बात होगीहमें मिति ठीक याद नहीं है । मैंने एक सन्तका पत्र पढ़ा थाजो कि उन्होंने अपने प्रेमीके प्रति दिया हुआ था । छोटा कार्ड था । पहले छोटा कार्ड हुआ करता था । एक-दो पैसेके कार्डमें मैंने समाचार पढ़ा था । अपने सेवकके प्रति लिखा था‒‘एक नाम छूट जायइतना काल‒समय अगर खाली चला जाय,तो ब्याहा हुआ बड़ा बेटा मरेउससे भी ज्यादा शोक होना चाहिये ।’ राम ! राम ! राम ! गजब हो गया ! यह लिखा था उसमें ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे