।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण अष्टमीवि.सं.२०७१सोमवार
नाम-महिमा



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
ब्याहा हुआ लड़का मर जाय तो हृदयमें एक चोट पहुँचती है कि ऐसा कमानेवाला सुपुत्र बेटा मर गया तो उससे भी ज्यादा दुःख होना चाहिये एक नाम-उच्चारण करें इतना खाली समय जानेपर । क्योंकि जो लड़के छोटे हैं वे बड़े हो जायँगे । गृहस्थोंके और फिर पैदा भी हो जायँगे । परन्तु समय थोड़े ही पैदा हो जायगा । जो समय खाली गया,वह जो घाटा पड़ावह तो पड़ ही गया । इस वास्ते हमें सावधानी रखनी चाहिये कि हमारा समय बरबाद न हो जाय‒‘जो दिन जाय भजनके लेखे, सो दिन आसी गिणतीमें’वह दिन गिनतीमें आवेगा । बिना भजनके जो समय गया,उसकी कोई कीमत नहींवह तो बरबाद हो गया । बड़ा भारी नुकसान हो गयाघाटा लग गया बड़ा भारी !

अबतक जो समय संसारमें लग गयावह तो लग ही गया । अब सावधान हो जायँ । सज्जनो ! भाइयो-बहिनो ! दिनमें थोड़ी-थोड़ी देरीमें देखो कि नाम याद है कि नहीं ।घरमें जगह-जगह भगवान्‌का नाम लिख दो और याद करो । भगवान्‌की तस्वीर इस भावसे सामने रख दो कि वे हमें याद आते रहें । हमें भगवान्‌को याद करना है । घरमें भगवान्‌का चित्र रखो पर इस भावनासे रखो कि तस्वीरपर हमारी दृष्टि पड़ते ही हमें भगवान् याद आयें । ऐसे भावसे रखकर सुन्दर-सुन्दर नाम लिख दो । जहाँ ज्यादा दृष्टि पड़ती होवहाँ नाम लिख दो ।

ऐसे गृहस्थके घरको मैंने देखा है । सीढ़ीसे उतरते हैं तो वहाँ नाम लिखा हुआ । सीढ़ीसे ऊपर चढ़ते हैं तो सामने नाम लिखा हुआ । जहाँ घूमते-फिरते हैंवहाँ नाम लिखा हुआ । वे नाम इस वास्ते लिखे कि मैं भूल न जाऊँप्रभुके नामकी भूल न हो जाय । ऐसी सावधानी रखो सज्जनो ! यह असली काम है असली ! बड़ा भारी लाभ है इसमें‒‘भक्ति कठिन करूरी जाण ! ड़समें नफा घणा नहीं हाण ॥’ इसमें नुकसान है ही नहीं । केवल नफा-ही-नफा है । बसफायदा-ही-फायदा है । इस प्रकार अपना सब समय सार्थक बन जाय‒‘एक भी श्वास खाली खोय ना खलक बीच ।’

संसारके भीतर जो समय खाली चला गया तो बड़ा भारी नुकसान हो गया । श्रीदादूजी महाराज फरमाते हैं‒‘दादू जैसा नाम था तैसा लीन्हा नाय ।’ इस नामकी जितनी महिमा हैवैसा नाम नहीं लियाजब कि उन्होंने उम्रभरमें क्या किया नाम ही तो जपा । परन्तु उनको लगता है कि नाम जैसा जपना चाहिये था वैसा नहीं जपा अर्थात् मुखसे जितना नाम लेना थाउतना नहीं लिया । अब‘देह हलावा हो रहा’ देहमेंसे बसप्राण गये... गये... ऐसी उनकी दशा हो रही हैपर वे कहते हैं‒‘हुंस रही मन माय’भगवान्‌का नाम और लेतेऔर लेते । जैसेधन कमानेवालेका लोभ जाग्रत् होता है तो उसके पास लाखों,करोड़ों रुपये हो जानेपर भी फिर नये-नये कारखाने खोलकर और धन ले लूँ‒ऐसा लोभ बढ़ता ही रहता है । यह धन तो यहीं रह जायगा और हमारा समय बरबाद हो जायगा । यदि भगवान्‌में लग जाओगे तो नामका वैसे लोभ लगेगा जैसे सन्तोंने प्रार्थना की है कि हे भगवान् ! हमारी एक जिह्वासे नाम लेते-लेते तृप्ति नहीं हो रही हैइस वास्ते हमारी हजारों जिह्वा हो जायँ, जिनसे मैं नाम लेता ही चला जाऊँ । उनकी ऐसी नामकी लालसा बढ़ती ही चली जाती है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे