।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल षष्ठीवि.सं.२०७१शनिवार
दुर्गतिसे बचो


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
जो लोग भगवान्‌के मन्दिरमें रहते हैंगीता,रामायणभागवत आदिका पाठ करते हैंभगवान्‌की आरती,स्तुतिप्रार्थना करते हैंभगवन्नामका जप करते हैंपर साथ-ही-साथ लोगोंको ठगते हैंभगवान्‌की भोग-सामग्रीवस्त्र आदिकी चोरी करते हैंठाकुरजीको पैसा कमानेका साधन मानते हैंऐसे मनुष्य भी मरनेके बाद भगवदपराधके कारण भूत-प्रेत बन सकते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट हो जाते हैं तो उसको दुःख नहीं देते । पूर्वजन्ममें भगवत्पूजाआरतीस्तुति-प्रार्थना आदि करनेका स्वभाव पड़ा हुआ होनेसे ऐसे भूत-प्रेत भगवन्नामका जप करते हैंहाथमें गोमुखी रखते हैंमन्दिरमें जाते हैंपरिक्रमा करते हैंभगवान्‌की स्तुति-प्रार्थना आदि भी करते हैं । परन्तु किसी मनुष्यमें प्रविष्ट हुए बिना ये भगवान्‌की स्तुति-प्रार्थना नहीं कर सकते । वृन्दावनमें बांकेबिहारीजीके मन्दिरमें एक छोटा बालक आया करता था । वह संस्कृत जानता ही नहीं थापर बिहारीजीके सामने खड़े होकर वह संस्कृतमें भगवान्‌के स्तोत्रोंका जोर-जोरसे पाठ किया करता था । पाठ करते समय उसकी आवाज भी बालक-जैसी नहीं रहती थीप्रत्युत बड़े आदमी-जैसी आवाज सुनायी दिया करती थी । कारण यह था कि उसमें एक प्रेत प्रविष्ट होता था और भगवान्‌की स्तुति करता थापर वह उस बालकको दुःख नहीं देता था । भगवदपराधका फल भोगनेके बाद भगवत्कृपासे ऐसे भूत-प्रेतोंकी सद्‌गति हो जाती हैप्रेतयोनि छूट जाती है ।

जैसे मनुष्योंमें जो अधिक पापी होते हैंदुर्गुणी-दुराचारी होते हैंहिंसात्मक कार्य करनेवाले होते हैंवे भगवान्‌की कथाकीर्तनसत्संग आदिमें ठहर नहीं सकते,वहाँसे उठ जाते हैंऐसे ही भयंकर पापोंके कारण जो भूत-प्रेतकी नीच योनियोंमें जाते हैंवे भगवन्नाम-जपकथा-कीर्तनसत्संग आदिके नजदीक नहीं आ सकते । जो लोग भगवन्नामकथा-कीर्तनसत्संग आदिका विरोध करते हैं,निन्दा-तिरस्कार करते हैंवे भी भूत-प्रेत बननेपर कथा-कीर्तनसत्संग आदिके नजदीक नहीं आ सकते अगर वे कथा-कीर्तन आदिके नजदीक आ जायँ तो उनके शरीरमें दाह होने लगता है ।

अगर पुजारियोंके मनमें सांसारिक वस्तुओंका महत्त्व न होप्रत्युत ठाकुरजीका महत्व होठाकुरजीके अर्पित चीजोंमें प्रसादकी भावना होभगवान्‌की वस्तु प्रसादरूपसे मिलनेपर वे गद्‌गद हो जाते हों और अपनेको बड़ा भाग्यशाली मानते हों कि हमें भगवान्‌की चीज मिल गयी,प्रसाद मिल गया‒इस तरह वस्तुओंमें भगवान्‌के सम्बन्धका महत्व हो तो भगवान्‌के अर्पित वस्तुओंको स्वीकार करनेपर भी उनको दोषभगवदपराध नहीं लगता । अन्तःकरणमें भगवान्‌का महत्त्व होनेके कारण वे कभी भूत-प्रेत बन ही नहीं सकते । परन्तु जिनके अन्तःकरणमें वस्तुओंका महत्व है, वस्तुओंकी कामनाममतावासना हैवे तीर्थस्थानमें,मन्दिरमें रहनेपर भी मरनेके बाद वासना आदिके कारण भूत-प्रेत हो जाते हैं । उन्होंने क्रियारूपसे भगवान्‌की पूजा,आरती आदि की हैइस कारण वे उस तीर्थ-स्थानमें ही रहते हैं । इस प्रकार उनको भगवदपराधका फल (भूत-प्रेतयोनि) भी मिल जाता है और भगवत्सम्बन्धी क्रियाओंका फल (तीर्थ-स्थानमें निवास) भी मिल जाता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘दुर्गतिसे बचो’ पुस्तकसे