।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशीवि.सं.२०७१रविवार
नाम-महिमा



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
तुलसी पूरब पाप तें हरि चर्चा न सुहाय ।
कै ऊँघे कै उठ चले  कै  दे  बात  चलाय ॥

सत्संगमें जायगा तो नींद आ जायगीदूसरी बात कहना शुरू कर देगा अथवा बैठकर चल देगापरन्तु यदि वह कुछ दिन सत्संगमें ठहर जाय तो उसके भी सत्संग लग जायगा । वह भी भजन करने लग जायगा । फिर वह सत्संग छोड़ेगा नहीं ।

एक बात मैंने सुनी है । एक आदमी यों ही हँसी-दिल्लगी उड़ानेवाला था । वह दिल्लगीमें ही कहता है कि ये देखो ये साधु ! ‘रामरामरामरामराम’ करते हैं तो दूसरे लोग कहते हैं‒हाँ भाई ! कैसे करते हैं तो वह फिर कहता है‒‘राम-राम-राम’ ऐसे करते हैं । वह उठकर कहीं भी जाता तो लोग कहते हैं‒हाँ बताओकैसे करते हैं तो वह फिर कहता ‘राम-राम-राम’ ऐसे करते हैं । ऐसे कहते-कहते महाराजउसकी लौ लग गयी । वह नाम जपने लगा । इस वास्ते‒‘भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ । नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥’ किसी तरहसे आप नाम ले तो लो । फिर देखो,इसकी विलक्षणताअलौकिकता । परन्तु सज्जनो ! बिना लिये इसका पता नहीं लगता । जैसे मिठाई जबतक मुखसे बाहर रहेतबतक उसके मिठासको नहीं जान सकते । मिठाई खानेवाला ही मिठाईके रसको जानता है ।

शास्त्रोंसेसन्तोंसे नाम-महिमा सुन करके हम नाममें यत्किंचित् कर सकते हैं । परन्तु उसका असली रस तब आयेगाजब आप स्वयं लग जाओगेऔर लग जाओगे भीतरसेहृदयसेदिखावटीपनसे नहीं अर्थात् लोगोंको दिखानेके लिये नहीं । लोगोंको दिखानेके लिये भजन करता हैवह तो लोगोंका भक्त हैभगवान्‌का नहीं । लोग मेरेको भजनानन्दी समझेंइस वास्ते दिखाता है तो वह भगवान्‌का भक्त कहाँ भगवान्‌का भक्त होगा तो वह भीतरसे कैसे नाम छोड़ सकेगा । एकान्तमें अथवा जन-समुदायमेंवह नामको कैसे छोड़ सकता है ? असली लोभको वह कैसे छोड़ सकता है आपके सामने पैसे आ जायँ रुपये आ जायँ अथवा आपके सामने पड़े हों तो छोड़ सकते हो क्या ? कैसे छोड़ सकते हैं ?ले लोगे ! कूड़े-करकटमें पड़े हुएको भी चट उठा लोगे तो जो नामका प्रेमी हैवह नाम छोड़ देगायह कैसे हो सकता है ?वह एक क्षणभर भी नामका वियोग कैसे सह सकता है ?

नारदजी महाराजने भक्ति-सूत्रमें लिखा है‒‘तदर्पिताखिलाचारिता तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति ।’अपना सब कुछ भगवान्‌के अर्पण तो कर देता हैपर भगवान्‌कीउनके नामकी थोड़ी-सी भूल हो जाय तो वह व्याकुल हो जाता है । जैसेमछलीको जलसे दूर करनेपर वह छटपटाने लगती है और कुछ देर रखोतो वह मर जायवह आरामसे नहीं रह सकती । ऐसे ही ‘तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति’ नामकी‒भगवान्‌की विस्मृति होनेपर परम व्याकुलता हो जायगी । उसको छोड़ नहीं सकते । भगवान्‌की स्मृतिका त्याग नहीं कर सकते ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे