।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदावि.सं.२०७१मंगलवार
नाम-महिमा



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
अतः यह बाई वहाँ चली जाये तो कुछ सत्संग हो जाय । बेचारी फूली बाईका ऊँचा-ऊँचा तो वह घाघरियाअपना वह ग्रामीण वेश था । वह वैसे ही रनिवासमें चली गयी । उसको देखकर सब रानियाँ हँस पड़ी कि क्या तमाशा आयी है । तो फूली बाई अपनी सीधी-सादी भाषामें बोली‒
ए गहणो गांठो तन की शोभाकाया काचो भांडो ।
फूली  कहे  थे  बैठी  कँई   राम   भजो   ए   रांडो ॥

ये सुन्दर गहने पहन करके थे (तुम) बैठी हो‘राम-राम क्यों नहीं करो । क्या करोगी ? ‘काया काचो भांडो’, न जाने कब फूट जाय । ऐसेमें बैठकर थे भजन नहीं करो तो थे क्या करो राँडोबैठी ‘राम-राम’ करो न फूली बाईको यह संकोच नहीं है कि मैं कैसे बोलती हूँ क्या कहती हूँ ?उसकी तो यह सीधी-सादी वाणी है । वह भगवान्‌के भजनमें रात-दिन लगी हुई है तो उसको याद करनेसे शान्ति मिलती है । महाराज ! हृदयका पाप दूर हो जाय याद करनेसे ।

कारण क्या है भगवान्‌का नाम लिया है । भगवान्‌के चरणोंकी शरण हो गयी है ।
बड़ सेयां बड़ होत है ज्यूं बामन भुज दण्ड ।
तुलसी बड़े प्रताप ते  दण्ड गयउ ब्रह्माण्ड ॥

वामनभगवान् छोटे-से बनकर बलिसे पृथ्वी माँगने गये और कहे‒‘मैं तो मेरे पैरोंसे तीन कदम पृथ्वी लूँगा ।’बलि कहता है‒‘अरे ब्राह्मण ! मेरे पास आ करके थोड़ा क्या लेता है और ले ले ।’ वामनभगवान्‌ने कहा‒ ‘नामैं तीन कदम ही लूँगा ।’ अब वे तीन कदम नापने लगे महाराज ! तो सबसे बड़ा लम्बा अवतार हुआ यह ! ब्रह्मचारीके हाथमें दण्ड होता है पलाशका । वामन भगवान् जितने ऊँचे थेतो उनका दण्ड भी उतना ही ऊँचा था । बड़ी-से-बड़ी लाठी कानतक होती है । अब वह इतनी छोटी लाठी हाथमें हो और स्वयं इतने बड़े हो गये कि वह दण्ड तो वामनभगवान्‌के दाँत कुचरनेमें भी काम नहीं आता । इतने छोटे घोचेका क्या करेंगेतो कहते हैं ‘सन्तदास लकड़ी बढ़ी  बिन कूंपल बिन पात ।’न कोंपल निकलीन पत्ता निकला और लकड़ी बढ़ गयी । क्यों बढ़ गयी । ‘बड़ सेयां बड़ होत है’ वह थी सूखी लकड़ी हीपर हाथमें किसके थी ऐसे ही सज्जनो ! आप और हम हैं साधारणपरन्तु भगवान्‌के चरणोंमें लग जायँ, नाममें लग जायँ भगवान्‌के चिन्तनमें लग जायँ तो गुजराती भाषामें एक पद आता है‒‘छोटा सहुथी, सहुथी मोटा थाय, थाय छे हरि भजन करे ।’ (છોટા સહુથીસહુથી મોટા થાયથાય છે હરિ ભજન કરે.) भगवान्‌का भजन करनेवाला ‘छोटा सहुथी’ सबसे छोटा ‘सहुथी मोटा थाय छे’सबसे बड़ा हो जाता हैक्यों हो जाता है ? उसने भगवान्‌का सहारा ले लिया है । भगवान्‌का नाम ले लिया है । भगवान्‌में लग गया है । इस वास्ते वह छोटा नहीं हैसाधारण नहीं है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे