।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल सप्तमीवि.सं.२०७१रविवार
गोस्वामी श्रीतुलसीदास-जयन्ती
दुर्गतिसे बचो



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒जो भगवन्नामका जपस्वाध्याय आदि करते हैं,वे भी मरनेके बाद क्या भूत-प्रेत बन सकते हैं ?

उत्तर‒प्रायः ऐसे मनुष्य भूत-प्रेत नहीं बनते । परन्तुनामजपकी रुचिकी अपेक्षा जिनकी सांसारिक पदार्थोंमें,अपनी सेवा करनेवालोंमेंअपने अनुकूल चलनेवालोंमें ज्यादा रुचि (आसक्ति) हो जाती है और अन्तसमयमें साधनमें स्थिति न रहकर सांसारिक पदार्थोंकीसेवा करनेवालोंकी याद आ जाती हैवे मरनेके बाद भूत-प्रेत बन सकते हैं । ऐसे भूत-प्रेत किसीको तंग नहीं करते किसीको दुःख नहीं देते ।

कर्मोंकी गति बड़ी ही गहन है‒‘गहना कर्मणो गतिः’ (४ । १७) । अतः पाप-पुण्यभाव आदिमें तारतम्य रहनेसे भूत-प्रेत आदिकी योनि मिल जाती है । भगवान्‌ने स्वयं कहा है कि कर्म और अकर्म क्या है‒इस विषयमें बड़े-बड़े विद्वान्‌लोग भी मोहित हो जाते हैं (४ । १६) ।

प्रश्न‒दुर्घटनामें मरनेवाले एवं आत्महत्या करनेवाले प्रायः भूत-प्रेत क्यों बनते हैं ?

उत्तर‒बीमारीमें तो ‘मेरेको मरना है’ऐसी सावधानीहोश रहता हैअतः बीमार व्यक्ति संसारसे उपराम होकर भगवान्‌में लग सकता है । परन्तु दुर्घटनाके समय मनमें कुछ-न-कुछ मनोरथचिन्तन रहता हैजिसके रहते हुए मनुष्य अचानक मर जाता है । अगर उस समय मनमें खराब चिन्तन होभगवान्‌का चिन्तन न हो तो वह आदमी भूत-प्रेत बन जाता है । दुर्घटनाके समय मारनेवालेकी तरफ मनोवृत्ति होनेसे उसीका चिन्तन होता हैइस कारण भी दुर्घटनामें मरनेवाला भूत-प्रेत बन जाता है । परन्तु जो संसारसे उपराम होकर पारमार्थिक मार्गमें लगा हुआ होवह दुर्घटना आदिमें अचानक मर भी जाय तो भी वह भूत-प्रेत नहीं बनता । तात्पर्य है कि अन्तःकरणमें सांसारिक राग,आसक्तिकामनाममता आदि रहनेसे ही मनुष्यकी अधोगति होती है । जिसके अन्तःकरणमें सांसारिक राग आदि नहीं है,उसका शरीर किसी भी देशमेंकिसी भी जगह किसी भी समय छूट जाय तो वह भूत-प्रेत नहीं बनताक्योंकि भूत-प्रेतयोनिमें ले जानेवाली सामग्री ही उसमें नहीं होती ।

जो क्रोधमें आकर अथवा किसी बातसे दुःखी होकर आत्महत्या कर लेता हैवह दुर्गतिमें चला जाता है अर्थात् भूत-प्रेत-पिशाच बन जाता है । आत्महत्या करनेवाला महापापी होता है । कारण कि यह मनुष्य-शरीर भगवत्प्राप्तिके लिये ही मिला हैअतः भगवत्प्राप्ति न करके अपने ही हाथसे मनुष्य-शरीरको खो देना बड़ा भारी पाप है,अपराध हैदुराचार है । दुराचारीकी सद्‌गति कैसे होगी अतः मनुष्यको कभी भी आत्महत्या करनेका विचार मनमें नहीं आने देना चाहिये ।

मनुष्यपर कोई बड़ी भारी आफत आ जायकोई भयंकर रोग हो जाय तो वह यही सोचता है कि अगर मैं मर जाऊँ तो सब कष्ट मिट जायँगे । परन्तु वास्तवमें आत्महत्या करनेपर कर्मोंका भोग (कष्ट) समाप्त नहीं होताउसको तो किसी-न-किसी योनिमें भोगना ही पड़ेगा । आत्महत्या करके वह एक नया पापकर्म करता हैजिसके फलस्वरूप उसको नीच योनिमें जाना पड़ेगाभूत-प्रेत बनना पड़ेगा और हजारों वर्षोंतक दुःख पाना पड़ेगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘दुर्गतिसे बचो’ पुस्तकसे