।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल षष्ठीवि.सं.२०७१रविवार
लोलार्कषष्ठीव्रत
नाम-जपकी विधि


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
नारदजी महाराज भक्ति-सूत्रमें लिखते हैं‒‘तदर्पिताखिलाचारिता तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति’ सब कुछ भगवान्‌के अर्पण कर देभगवान्‌को भूलते ही परम व्याकुल हो जाय । जैसे मछलीको जलसे बाहर कर दिया जाय तो वह तड़फड़ाने लगती है । इस तरहसे भगवान्‌की विस्मृतिमें हृदयमें व्याकुलता हो जाय । भगवान्‌को भूल गये,गजब हो गया ! उसकी विस्मृति न हो । लगातार उसकी स्मृति रहे और प्रार्थना करे‒‘हे भगवान् ! मैं भूलूँ नहींहे ! नाथ ! मैं भूलूँ नहीं ।’ ऐसा कहता रहे और निरन्तर नाम-जप करता रहे ।

(५) इसमें एक बात और खास है‒कामना न करे अर्थात् मैं माला फेरता हूँमेरी छोरीका ब्याह हो जाय । मैं नाम जपता हूँ तो धन हो जायमेरे व्यापारमें नफा हो जाय । ऐसी कोई-सी भी कामना न करे । यह जो संसारकी चीजोंकी कामना करना है यह तो भगवान्‌के नामकी बिक्री करना है । इससे भगवान्‌का नाम पुष्ट नहीं होताउसमें शक्ति नहीं आती । आप खर्च करते रहते होमानो हीरोंको पत्थरोंसे तौलते हो ! भगवान्‌का नाम कहेंगे तो धन-संग्रह हो जायगा । नहीं होगा तो क्या हो जायगा मेरे पोता हो जाय । अब पोता हो जाय । अब पोता हो गया तो क्या नहीं हो गया तो क्या एक विष्ठा पैदा करनेकी मशीन पैदा हो गयीतो क्या हो गया ? नहीं हो जाय तो कौन-सी कमी रह गयी वह भी मरेगातुम भी मरोगे ! और क्या होगा पर इनके लिये भगवान्‌के नामकी बिक्री कर देना बहुत बड़ी भूल है । इस वास्ते ऐसी तुच्छ चीजोंके लियेजिसकी असीमअपार कीमत हैउस भगवन्नामकी बिक्री न करेंसौदा न करें और कामना न करें । नाम महाराजसे तो भगवान्‌की भक्ति मिले,भगवान्‌के चरणोंमें प्रेम हो जायभगवान्‌की तरफ खिंच जायँ यह माँगो । यह कामना नहीं हैक्योंकि कामना तो लेनेकी होती है और इसमें तो अपने-आपको भगवान्‌को देना है । आपका प्रेम मिलेआपकी भक्ति मिलेमैं भूलूँ ही नहीं‒ऐसी कामना खूब करो ।

सन्तोंने भगवान्‌से भक्ति माँगी है । अच्छे-अच्छे महात्मा पुरुषोंने भगवान्‌के चरणोंका प्रेम माँगा है‒
जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु ।
बसहु  निरंतर  तासु  मन   सो  राउर  निज  गेहु ॥

भगवान् शंकर माँगते हैं‒

बार  बार  बर  मागउँ   हरषि  देहु  श्रीरंग ।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥

तो उनके कौन-सी कमी रह गयी पर यह माँगना सकाम नहीं है । तीर्थदान आदिके जितने पुण्य हैंउन सबका एक फल माँगे कि भगवान्‌के चरणोंमें प्रीति हो जाय ।हे नाथ ! आपके चरणोंमें प्रेम हो जायआकर्षण हो जाय । भगवान् हमें प्यारे लगेंमीठे लगें । यह कामना करो । यह कामना सांसारिक नहीं है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे