।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल नवमीवि.सं.२०७१मंगलवार
दुर्गतिसे बचो



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 जैसेनरकोंमें प्राणियोंको उबलते हुए तेलमें डाल देते हैंउनके शरीरके टुकड़े-टुकड़े कर देते हैंफिर भी जिन पापकर्मोंके कारण वे नरकोंमें गये हैंउन कर्मोंके समाप्त होनेतक वे प्राणी मरते नहीं । ऐसे ही मनुष्यका कोई बुरे कर्मोंका भोग आ जाता है तो उनमें भूत-प्रेत प्रविष्ट हो जाते हैं । जबतक कर्मोंका भोग बाकी रहता हैतबतक कितने ही उपाय करनेपरमन्त्र-यन्त्र आदिका प्रयोग करनेपर भी भूत-प्रेत निकलते नहीं । जब कर्मोंका भोग समाप्त हो जाता है,तब किसी निमित्तसे वे निकल जाते हैं । तात्पर्य यह है कि जिनको प्रारब्धके अनुसार दुःख भोगना हैउन्हींमें प्रविष्ट होकर भूत-प्रेत उनको दुःख देते हैं ।

ऐसा देखा जाता है कि कुटुम्बका कोई व्यक्ति मरकर पितर बन जाता है तो वह जब आता है, तब किसी एक व्यक्तिमें ही आता हैहरेकमें नहीं आता । इससे पता लगता है कि जिसके साथ पुराना ऋणानुबन्ध होता हैउसीमें पितर आते हैं । इसी तरह भूत-प्रेत भी उसीमें आते हैंजिसके साथ पुराना ऋणानुबन्ध होता है ।

भूत-प्रेत मनुष्यकी आयु रहते हुए उसको मार नहीं सकते । उसकी आयु समाप्त होनेपर ही वे उसको मार सकते हैं । इस विषयमें हमने एक बात सुनी है । लगभग सौ वर्ष पुरानी राजस्थानकी घटना है । कुछ मुसलमान गायोंको कसाईखाने ले जा रहे थे । वहाँके राजाको इसकी खबर मिली तो उसने अपने सिपाहियोंको भेजा । सिपाहियोंने उन मुसलमानोंको मारकर गायें छुड़ा लीं । उनमेंसे एक मुसलमान मरकर जिन्न बन गया और वह राजाके पीछे लग गया । राजाने बहुत उपाय कियेपर उसने छोड़ा नहीं । जिन्न कहता कि मैं एक आदमीकी बलि लेकर ही जाऊँगा । आखिर एक ठाकुरने कहा कि मैं अपनी बलि देनेके लिये तैयार हूँ । जिन्नने राजाको छोड़ दिया और तुरन्त उस ठाकुरको मार दिया । ठाकुरके इच्छानुसार उसके शवको (श्मशान-भूमिमें ले जानेसे पहले) उसके गुरुके पास ले जाया गया । जब लोग ठाकुरके शवको उसके गुरुके चारों तरफ घुमाकर (परिक्रमा दिलाकर) ले जाने लगेतब गुरुके पास बैठे एक दूसरे सन्तने कहा कि शव खाली जा रहा हैकुछ देना चाहिये । गुरु बोले कि कुछ कर नहीं सकतेइसकी आयु पूरी हो गयी है । फिर विचार करके दोनों सन्तोंने अपनी आयुमेंसे बारह वर्षकी आयु देकर ठाकुरको जीवित कर दिया । तात्पर्य है कि राजाकी आयु पूरी नहीं हुई थी, इसलिये जिन्न उसको मार नहीं सका । परन्तु ठाकुरकी आयु पूरी हो चुकी थीअतः जिन्नने उसको मार दिया ।

प्रश्न‒मृगीरोगवाले और प्रेतबाधावाले मनुष्योंके लक्षण प्रायः एक समान दीखते हैंअतः उन दोनोंकी अलग-अलग पहचान कैसे हो ?

उत्तर‒मृगीरोगवाले व्यक्तिको तो मूर्च्छा होती हैपर प्रेतबाधावाले व्यक्तिको प्रायः मूर्च्छा नहीं होतीवह कुछ-न-कुछ बकता रहता है । मृगीरोगवाले व्यक्तिमें तो एक ही जीवात्मा रहती है पर प्रेतबाधावाले व्यक्तिमें जीवात्माके साथ प्रेतात्मा भी रहती हैजो उस व्यक्तिको कई तरहसे दुःख देती है, तंग करती है । मृगीरोगवाला व्यक्ति तो दवासे ठीक हो जाता हैपर प्रेतबाधावाला व्यक्ति दवासे ठीक नहीं होता ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘दुर्गतिसे बचो’ पुस्तकसे