।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल दशमीवि.सं.२०७१बुधवार
एकादशी-व्रत कल है
दुर्गतिसे बचो



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 प्रश्न‒जो भूत-प्रेतकी बाधाको दूर किया करते हैंऐसे तान्त्रिकोंकी मरनेके बाद क्या गति होती है ?

उत्तर‒भूत-प्रेतकी बाधा दूर करनेवाले तांत्रिक भी मरनेके बाद प्रायः भूत-प्रेत ही बनते हैंइसके अनेक कारण हैंजैसे‒

(१) भूत-प्रेतको निकालनेवाले तान्त्रिकोंकी विद्या प्रायः मलिन होती है । उनका खान-पान एवं चिन्तन भी मलिन होता है । उस मलिनताके कारण उनकी दुर्गति होती है अर्थात् वे मरनेके बाड़ प्रेतयोनिमें चले जाते हैं ।

(२) भूत-प्रेत किसीके शरीरमें प्रविष्ट होते हैं तो उनको वहाँ सुख मिलता हैखाने-पीनेके लिये अच्छे पदार्थ मिलते हैंअतः वे वहाँसे निकलना नहीं चाहते । परंतु तान्त्रिक लोग मन्त्रोंके द्वारा उनको जबरदस्ती निकालते हैं और मदिराकी बोतलमें बन्द करके उनको जमीनमें गाड़ देते हैं अथवा किसी वृक्षमें कीलित कर देते हैंजहाँ वे सैकड़ों वर्षोंतक भूखे-प्यासे रहकर महान् दुःख पाते रहते हैं । उनको इस प्रकार दुःख देना बड़ा भारी पाप हैक्योंकि किसी भी जीवको दुःख देना पाप है । अतः उस पापके फलस्वरूप वे तांत्रिक मरनेके बाद प्रेतयोनियोमे चले जाते हैं ।

(३) भूत-प्रेतको निकालनेवाले तान्त्रिकोंमें प्रायः दूसरोंके हितकी भावना नहीं होती । वे केवल पैसोंके लोभसे ही इस कार्यमें प्रवृत्त होते हैं । वे ठगाई और चालाकी भी करते हैं । इस कारण भी उनको मरनेके बाद भूत-प्रेत बनना पड़ता है ।

अगर तान्त्रिकोंमें निःस्वार्थभावसे सबका हित करनेकीउपकार करनेकी भावना हो अर्थात् जिसको भूत-प्रेतने पकड़ा हैउस व्यक्तिको सुखी करनेकी और भूत-प्रेतको निकालकर उसकी (गयाश्राद्ध आदिके द्वारा) सद्‌गति करनेकी भावना होचेष्टा हो तो वे भूत-प्रेत नहीं बन सकते । जिनमें सबके हितकी भावना हैउनकी कभी दुर्गति हो ही नहीं सकती । भगवान्‌ने कहा है कि जो सम्पूर्ण प्राणियोंके हितमें रत रहते हैंवे मेरेको ही प्राप्त होते हैं‒‘ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः’ (१२ । ४) ।

प्रश्न‒भूत-प्रेतोंको बोतलमें बन्द करनेकीलित  करने आदिमें उन भूत-प्रेतोंके कर्म कारण हैं या बन्द करनेवाले कारण हैं ?

उत्तर‒मुख्यरूपसे उनके कर्म ही कारण हैं । उनका कोई ऐसा पापकर्म आ जाता हैजिसके कारण वे पकड़में आ जाते हैं । अगर उनके कर्म न हों तो वे किसीकी पकड़में नहीं आ सकते । परन्तु जो उनको कीलित आदि करनेमें निमित्त बनते हैंवे बड़ा भारी पाप करते हैं । अतः मनुष्यको भूत-प्रेतोंके बन्धनकीलनमें निमित्त बनकर पापका भागी नहीं होना चाहिये । हाँ, उनके उद्धारके लिये उनके नामसे भागवत-सप्ताह गयाश्राद्धभगवन्नाम-जप आदि करना चाहिये अथवा वे भूत-प्रेत अपनी मुक्तिका जो उपाय बतायें,उस उपायको करना चाहिये । जो इस प्रकार प्रेतात्माओंकी सद्‌गति करता एवं कराता हैउसको बड़ा भारी पुण्य होता है एवं वे दुःखी प्रेतात्मा भी प्रेतयोनिसे छूटनेपर उसको आशीर्वाद देते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘दुर्गतिसे बचो’ पुस्तकसे