।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल द्वादशीवि.सं.२०७१शुक्रवार
दुर्गतिसे बचो



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 प्रश्न‒कुछ तान्त्रिकलोग भूत-प्रेतोंको अपने वशमें करके उनसे अपने घरकाखेतका काम कराते हैं तो ऐसा करना उचित है या अनुचित ?

उत्तर‒किसी भी जीवको परवश करना मनुष्यके लिये उचित नहीं है । हाँ, जैसे किसी मनुष्यको मजदूरी देकर उससे काम कराते हैंऐसे भूत-प्रेतोंको खुराक देकरउनको प्रसन्न करके उनसे काम करानेमें कोई दोष नहीं है । परन्तु पारमार्थिक साधनामें लगे हुए साधकको ऐसा नहीं करना चाहिये । ऐसा काम वे ही लोग कर सकते हैंजो संसारमें ही रचे-पचे रहना चाहते हैं ।

प्रश्न‒भूत-प्रेतोंको खुराक कैसे मिलती है वे कैसे तृप्त होते हैं ?

उत्तर‒भूत-प्रेतोंका शरीर वायुप्रधान होता हैअतः इत्र आदि सुगन्धित वस्तुओंको सूँघकर उनको खुराक मिल जाती है और वे बड़े प्रसन्न हो जाते हैं । उनके निमित्त किसी ब्राह्मणको अथवा अपनी बहनबेटी या भानजीको बढ़िया-बढ़िया मिठाई खिलानेसे उनको खुराक मिल जाती है ।

दस-बारह वर्षका एक बालक जलमें डूबकर मर गया और प्रेत बन गया । वह अपनी बहनमें आया करता और अपना दुःख सुनाया करता था । एक दिन वह अपनी बहनमें आकर बोला कि मैं बहुत भूखा हूँ । तब उसके परिवारवालोंने उसके नामसे एक ब्राह्मणको भोजन कराया । जब ब्राह्मण भोजन करने लगातब जैसे भोजन करते समय मनुष्यका मुख हिलता हैवैसे ही दूसरे कमरेमें बैठी उस प्रेतकी बहनका भी मुख हिलने लगा । जब ब्राह्मणने भोजन कर लियातब वह प्रेत बहनके मुखसे बोला कि मेरी तृप्ति हो गयी ! अतः प्रेतात्माके नामसे शुद्ध-पवित्र  ब्राह्मणको भोजन करानेसे वह भोजन उसको मिलता है ।

पासमें ही तालाब हैनदी बह रही है और उसके जलको प्रेत देखते भी हैंपर वे उस जलको पी नहीं सकते,प्यासे ही रहते हैं ! स्नानके बाद प्रेतके नामसे अथवा ‘अज्ञात नामवाले प्रेतात्माओंको जल मिल जाय’इस भावसे गीली धोतीको किसी स्थानपर निचोड़ दिया जाय तो प्रेत उस जलको पी लेते हैं । शौचसे बचा हुआ जल काँटेदार वृक्षपर अथवा आकके पौधेपर डाल दिया जाय तो उस जलको भी प्रेत पी लेते हैं और तृप्त हो जाते हैं ।

तुलसीदासजी महाराज शौच जाते थे तो बचा हुआ जल प्रतिदिन यों ही एक काँटेवाले पेड़पर डाल दिया करते थे । उस पेड़में एक प्रेत रहता थाजो उस अशुद्ध जलको पी लेता था । एक दिन वह प्रेत तुलसीदासजीके सामने प्रकट होकर बोला‒मैं बहुत प्यासा मरता थातुम्हारे जलसे अब मैं बहुत तृप्त हो गया हूँ । तुम मेरेसे जो माँगना चाहोमाँग लो ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘दुर्गतिसे बचो’ पुस्तकसे