।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल दशमीवि.सं.२०७१गुरुवार
एकादशी-व्रत कल है
दस नामापराध


(गत ब्लॉगसे आगेका)
हरि हीराँ री गाठडीगाहक बिना मत खोल ।
आसी  हीराँ  पारखी  बिकसी  मँहगे  मोल ॥

भगवान्‌के ग्राहकके बिना नाम-हीरा सामने क्यों रखे भाई वह तो आया है दो पैसोंकी मूँगफली लेनेके लिये और आप सामने रखो तीन लाख रत्न-दाना क्या करेगा वह रतनका उसके सामने भगवान्‌का नाम क्यों रखो भाई ? ऐसे कई सज्जन होते हैं जो नामकी महिमा सुन नहीं सकते । उनके भीतर अरुचि पैदा हो जाती है ।

अन्नसे पले हैंइतने बड़े हुएपरन्तु भीतर पित्तका जोर होता है तो मिश्री खराब लगती हैअन्नकी गन्ध आती है । वह भाता नहींसुहाता नहीं । अगर अन्न अच्छा नहीं है तो इतनी बड़ी अवस्था कैसे हो गयी अन्न खाकर तो पले हो,फिर भी अन्न अच्छा नहीं लगता कारण क्या है ? पेट खराब है । पित्तका जोर है ।

तुलसी पूरब पाप तेहरिचर्चा न सुहात ।
जैसे जुरके जोरसेभोजनकी रुचि जात ॥

ज्वरमें अन्न अच्छा नहीं लगता । ऐसे ही पापीको बुखार हैइस वास्ते उसे नाम अच्छा नहीं लगता । तो उसको नाम मत सुनाओ । मिश्री कड़वी लगती है सज्जनो ! और मिश्री कड़वी है तो क्या कुटकचिरायता मीठा होगा परन्तु पित्तके जोरसे जीभ खराब है । पित्तकी परवाह नहीं मिश्री खाना शुरू कर दो । खाते-खाते पित्त शान्त हो जायगा और मिश्री मीठी लगने लग जायगी ।

ऐसे किसीका विचार होरुचि न हो तो नाम-जप करना शुरू कर दे इस भावसे कि यह भगवान्‌का नाम है । हमें अच्छा नहीं लगता हैहमारी अरुचि है तो हमारी जीभ खराब है । यह नाम तो अच्छा ही है‒ऐसा भाव रखकर नाम लेना शुरू कर दें और भगवान्‌से प्रार्थना करें कि हे नाथ ! आपके चरणोंमें रुचि हो जायआपका नाम अच्छा लगे । ऐसे भगवान्‌से कहता रहेप्रार्थना करता रहे तो ठीक हो जायगा ।

‘श्रीशेशयोर्भेदधी’(३) भगवान् विष्णुके भक्त हैं तो शंकरकी निन्दा न करें । दोनोंमें भेद-बुद्धि न करें । भगवान् शंकर और विष्णु दो नहीं हैं‒

उभयोः प्रकृतिस्त्वेका प्रत्ययभेदेन भिन्नवद्‌भाति ।
कलयति कश्चिन्मूढो  हरिहरभेदं  विना  शास्त्रम् ॥

भगवान् विष्णु और शंकर इन दोनोंका स्वभाव एक है । परन्तु भक्तोंके भावोंके भेदसे भिन्नकी तरह दीखते हैं । इस वास्ते कोई मूढ़ दोनोंका भेद करता है तो वह शास्त्र नहीं जानता । दूसरा अर्थ होता है ‘हृञ् हरणे’ धातु तो एक है पर प्रत्यय-भेद है । हरि और हर ऐसे प्रत्यय-भेदसे भिन्नकी तरह दीखते हैं । ‘हरि-हर’ के भेदको लेकर कलह करता है वह ‘विना शास्त्रम्’ पढ़ा लिखा नहीं है और ‘विनाशाय अस्त्रम्’अपना नाश करनेका अस्त्र है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे