।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल द्वादशीवि.सं.२०७१शनिवार
श्रीवामनद्वादशी
दस नामापराध


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
शास्त्रोंसन्तों आदिने जो भगवन्नामकी महिमा गायी हैयदि वह इकट्ठी की जाय तो महाभारतसे बड़ा पोथा बन जाय । इतनी महिमा गायी है फिर भी इसका अन्त नहीं है । फिर भी उनकी निन्दा करे और नामसे लाभ लेना चाहे तो कैसे होगा ?

जिन गुरु महाराजसे हमें नाम मिला हैयदि उनका निरादर करेंगेतिरस्कार करेंगे तो नाम महाराज रुष्ट हो जायेंगे । कोई कहते हैं कि हमने गुरु किये पर वे ठीक नहीं निकले । ऐसी बात भी हो जाय तो मैं एक बात कहता हूँ कि आप उनको छोड़ दो भले हीपरन्तु निन्दा मत करो ।

गुरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानतः ।
उत्पथप्रतिपन्नस्य परित्यागो विधीयते ॥

ऐसा विधान आता है । इस वास्ते गुरुको छोड़ दो और नाम-जप करो । भगवान्‌के नामका जप तो करोपर गुरुकी निन्दा मत करो । जिससे कुछ भी पाया है पारमार्थिक बातें ली हैंजिससे लाभ हुआ हैभगवान्‌की तरफ रुचि हुई है,चेत हुआ हैहोश हुआ हैउसकी निन्दा मत करो ।

‘नाम्न्यर्थवादभ्रमः’(७) नाममें अर्थवादका भ्रम है । यह महिमा बढ़ा-चढ़ाकर कही हैइतनी महिमा थोडी है नामकी ! नाममात्रसे कल्याण कैसे हो जायगा ऐसा भ्रम न करेंक्योंकि भगवान्‌का नाम लेनेसे कल्याण हो जायगा । नाममें खुद भगवान् विराजमान हैं । मनुष्य नींद लेता है तो नाम लेते ही सुबोध होता है अर्थात् किसीको नींद आयी हुई है तो उसका नाम लेकर पुकारो तो वह नींदमें सुन लेगा । नींदमें सम्पूर्ण इन्द्रियाँ मनमेंमन बुद्धिमें और बुद्धि अविद्यामें लीन हुई रहती है‒ऐसी जगह भी नाममें विलक्षण शक्ति है । ‘शब्दशक्तेरचिन्त्यत्वात्’ शब्दमें अपारअसीमअचिन्त्य शक्ति मानी है । नींदमें सोता हुआ जग जाय । अनादि कालसे सोया हुआ जीव सन्त-महात्माओंके वचनोंसे जग जाता है,उसको होश आ जाता है । जिस बेहोशीमें अनन्त जन्म बीत गये । लाखों-करोड़ों वर्ष बीत गये । ऐसे नींदमें सोता हुआ भीशब्दमें इतनी अलौकिक विलक्षण शक्ति हैजिससे वह जाग्रत् हो जायअविद्या मिट जायअज्ञान मिट जाय । ऐसे उपदेशसे विचित्र हो जाय आदमी ।

यह तो देखनेमें आता है । सत्संग सुननेसे आदमीमें परिवर्तन आता है । उसके भावोंमें महान् परिवर्तन हो जाता है । पहले उसमें क्या-क्या इच्छाएँ थींउसकी क्या दशा थी,किधर वृत्ति थीक्या काम करता था ? और अब क्या करता है ? इसका पता लग जायगा । इस वास्ते शब्दमें अचिन्त्य शक्ति है ।
        
            नाममें अर्थवादकी कल्पना करना कि नामकी महिमा झूठी गा दी हैलोगोंकी रुचि करनेके लिये यह धोखा दिया है । थोड़ा ठंडे दिमागसे सोचो कि सन्त-महात्मा भी धोखा देंगे तो तुम्हारे कल्याणकीहितकी बात कौन कहेगा ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे