।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशीवि.सं.२०७१रविवार
महारविवार-व्रत, अनन्तचतुर्दशी-व्रत  
दस नामापराध

 (गत ब्लॉगसे आगेका)
बड़े अच्छे-अच्छे महापुरुष हुए हैं और उन्होंने कहा है‒‘भैया ! भगवान्‌का नाम लो ।’ असम्भव सम्भव हो जाय । लोगोंने ऐसा करके देखा है । असम्भव बात भी सम्भव हो जाती है । जो नहीं होनेवाली है वह भी हो जाती है । जिनके ऐसी बीती है उम्रमेंउन लोगोंने कहा है । ऐसी असम्भव बात सम्भव हो जायन होनेवाली हो जाय । इसमें क्या आश्चर्य है क्योंकि ‘कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थ ईश्वरः’ ईश्वर करनेमेंन करनेमेंअन्यथा करनेमें समर्थ होता है । वह ईश्वर वशमें हो जाय अर्थात् भगवान् भगवन्नाम लेनेवालेके वशमें हो जाते हैं ।

नाम महाराजसे क्या नहीं हो सकता ऐसा कुछ है ही नहींजो न हो सके अर्थात् सब कुछ हो सकता है । भगवान्‌का नाम लेनेसे ऐसे लाभ होता है बड़ा भारी । नामसे बड़े-बड़े असाध्य रोग मिट गये हैंबड़े-बड़े उपद्रव मिट गये हैंभूत-प्रेत-पिशाच आदिके उपद्रव मिट गये हैं । भगवान्‌का नाम लेनेवाले सन्तोंके दर्शनमात्रसे अनेक प्रेतोंका उद्धार हो गया । भगवान्‌का नाम लेनेवाले पुरुषोंके संगसेउनकी कृपासे अनेक जीवोंका उद्धार हो गया है ।

सज्जनो ! आप विचार करें तो यह बात प्रत्यक्ष दीखेगी कि जिन देशोंमें सन्त-महात्मा घूमते हैंजिन गाँवोंमेंजिन प्रान्तोंमें सन्त रहते हैं और जिन गाँवोंमें सन्तोंने भगवान्‌के नामका प्रचार किया हैवे गाँव आज विलक्षण हैं दूसरे गाँवोंसे । जिन गाँवोंमें सौ-दो-सौ वर्षोंसे कोई सन्त नहीं गया हैवे गाँव ऐसे ही पड़े हैं अर्थात् वहांके लोगोंकी भूत-प्रेत-जैसी दशा है । भगवान्‌का नाम लेनेवाले पुरुष जहाँ घूमे हैं,पवित्रता आ गयीविलक्षणता आ गयीअलौकिकता आ गयी । वे गाँव सुधर गयेघर सुधर गयेवहाँके व्यक्ति सुधर गये,उनको होश आ गया । वे स्वयं भी कहते हैंहम मामूली थे पर भगवान्‌का नाम मिलासन्त मिल गये तो हम मालामाल हो गये ।

१९९३ वि सं में हमलोग तीर्थयात्रामें गये थे तो काठियावाड़में एक भाई मिला । उसने हमको पाँच-सात वर्षोंकी उम्र बतायी । अरे भाई ! तुम इतने बड़े दीखते होतो क्या बात है उस भाईने कहा‒मैं सात वर्षोंसे ही ‘कल्याण’ मासिक पत्रका ग्राहक हूँ । जबसे इधर रुचि हुईतबसे ही मैं अपनेको मनुष्य मानता हूँ । पहलेकी उम्रको मैं मनुष्य मानता ही नहींमनुष्यके लायक काम नहीं किया । उद्दण्ड, उच्छृंखल होते रहे । तो बोलोकितना विलक्षण लाभ होता है ‘तीर्थयात्रा-ट्रेन गीताप्रेसकी है’ऐसा सुनते तो लोग परिक्रमा करते । जहाँ गाड़ी खड़ी रहतीवहाँके लोग कीर्तन करते और स्टेशनों-स्टेशनोंपर कीर्तन होता कि आज तीर्थयात्राकी गाड़ी आनेवाली है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे