।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि

फाल्गुन कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७१, शुक्रवार 
मानसमें नाम-वन्दना

      

(गत ब्लॉगसे आगेका)

यहाँ कहते हैं कि ‘निर्गुन रूप सुलभ अति’ निर्गुणरूपको सुलभ ही नहीं, अत्यन्त सुलभ बताया और सगुणको कोई जानता नहीं, ऐसा कहा । इस कारण कहा जा सकता है कि दोनों बातोंमें विरोध आता है । एक जगह निर्गुणको अति सुलभ बता रहे हैं तो दूसरी जगह ग्यान पंथ कृपान कै धारा’ । इसी तरह सगुन जान नहि कोई’ कह रहे हैं और फिर सुगमता बताकर भक्तिकी महिमा गा रहे हैं ।

दोनों बातोंमें विरोध दीखता है; परंतु वास्तवमें विरोध नहीं है । निर्गुणरूप समझनेमें बड़ा सुगम है, उसमें दोषबुद्धि सम्भव नहीं है । उसे तर्क-वितर्कसे समझा जा सकता है; परंतु सगुणरूपमें दोषबुद्धि हो सकती है तथा तर्क-वितर्क भी वहाँ चलता नहीं । इसलिये सगुणरूपके समझनेमें कठिनता है । परंतु प्राप्तिके मार्गमें चला जाय तो सगुणका मार्ग बड़ा सरल है, सीधा है । सगुण भगवान्‌की लीला गाकर, पढ़कर, सुनकर मनुष्य बड़ी सरलतासे भगवत्प्राप्ति कर सकता है । निर्गुण पंथ बड़ा कठिन है, कारण कि देहाभिमानी मनुष्यकी निर्गुण-तत्त्वमें स्थिति होनी बड़ी कठिन है (गीता १२ । ५) ।

इससे निष्कर्ष निकला कि मार्ग तो सगुणवाला श्रेष्ठ है । साधक उसके द्वारा जल्दी पहुँचता है और विचारसे एवं तर्कसे निर्गुण स्वरूपको सुगमतासे समझ सकते हैं, पर सगुणमें तर्क नहीं चलता । इसलिये अपनी-अपनी जगह दोनों ही श्रेष्ठ हैं, दोनों ही उत्तम हैं ।

खास बात यह है कि पात्रके अनुसार सुगमता और कठिनता होती है । जिसकी रुचि, योग्यता, विश्वास निर्गुणमें है, उसके लिये निर्गुणरूप सुलभ है । जिसकी रुचि, विश्वास, योग्यता सगुणमें है, उसके लिये सगुण सुलभ है । इसलिये पात्रके अनुसार दोनों ही कठिन हैं और दोनों ही सुगम हैं । जो जिसको चाहता है, वह उसके लिये सुगम हो जाता है ।

एक रूपकी प्राप्ति होनेपर दोनोंकी ही प्राप्ति हो जाती है, फिर कोई-सा भी रूप जानना बाकी नहीं रहता; क्योंकि दोनोंका तत्त्व एक ही है । सगुण और निर्गुण किसी रूपको लेकर साधक साधना करे, अन्तमें दोनोंको जान लेगा । कारण कि तत्त्वतः दोनों एक ही हैं ।

उभय अगम जुग सुगम नाम तें ।
कहेउँ नामु  बड़  ब्रह्म  राम  तें ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २३ । ५)

दोनों ही रूप नाम लेनेसे सुगम हो जाते हैं । दोनों अगम हैं मानो बुद्धि वहाँ काम नहीं करती । इस कारण जाननेमें अगम हैं; परंतु जुग सुगम नाम तें’ नामसे दोनों सुगम हो जाते हैं अर्थात् अगम होते हुए भी नाम-जप किया जाय तो दोनों ही सुगम हो जायँ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे