।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि

फाल्गुन कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७१, शनिवार
एकादशी-व्रत कल है 
मानसमें नाम-वन्दना

      

(गत ब्लॉगसे आगेका)

आपने सुना होगा कि कई सगुणरूपके और कई निर्गुणरूपके भक्त हुए हैं उन्होंने भी राम-राम’ किया है । जैसे, श्रीगोस्वामीजी आदि वैरागी बाबा लोग सगुण भगवान्‌के उपासक हुए, वे भी राम-राम सीताराम राम-राम’ऐसा करते थे । निर्गुण-साधनामें भी संत मतको माननेवाले भक्त हुए हैं । जैसे, श्रीहरिरामदासजी महाराज, श्रीरामदासजी महाराज‒ये रामस्नेही सम्प्रदायमें संत हुए हैं । ये भी राम-राम’ करते थे । बिलकुल प्रत्यक्ष बात है कि नामसे दोनोंरूप सुगम हो जाते हैं । इसलिये तुलसीदासजी महाराज कहते हैं कहेउँ नामु बढ़ ब्रह्म राम तें’ राम और ब्रह्मसे नाम बड़ा है । अगुण ब्रह्म हुआ और सगुण रामजी हुए । इन दोनोंको प्रत्यक्ष करा देनेके कारण नाम दोनोंसे बड़ा हुआ । नामको अगुण-सगुण दोनोंसे बड़ा कहकर गोस्वामीजी निर्गुण प्रकरण प्रारम्भ करते हैं ।

व्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी ।
सत चेतन घन आनँद रासी ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २३ । ६)

जो दारुगत अग्निकी तरह काष्ठमें व्यापक है और दीखता नहीं है‒ऐसे सब संसारमें व्यापक अगुण परमात्मा हैं । वह अगुण स्वरूप है । वह अविनाशी है और व्यापकरूपसे सर्वत्र परिपूर्ण है सत चेतन मन आनँद रासी’ वह सत् है, चेतन है और घन-आनन्द राशि है, मानो सब जगह केवल आनन्द-ही-आनन्द है, आनन्दकी राशि है । उस आनन्दरूप परमात्मासे कोई जगह खाली नहीं है, कोई समय खाली नहीं, कोई वस्तु खाली नहीं, कोई व्यक्ति खाली नहीं, कोई परिस्थिति उससे खाली नहीं । सबमें परिपूर्ण ऐसा अविनाशी वह निर्गुण है । वस्तुएँ नष्ट हो जाती हैं, व्यक्ति नष्ट हो जाते हैं, समयका परिवर्तन हो जाता है, देश बदल जाता है; परंतु यह तत्त्व ज्यों-का-त्यों ही रहता है । सब समयमें, सब कालमें, सब देशमें, सब वस्तुओंमें, सम्पूर्ण घटनाओंमें, सम्पूर्ण परिस्थितियोंमें ज्यों-का-त्यों रहता है । इसका विनाश नहीं होता, इसलिये यह सत् है । सत् सबका आश्रय है, आधार है, चित् सबका प्रकाशक है । केवल शुद्धज्ञान-स्वरूप है, इसलिये चित् है और आनन्दकी तो राशि है, घन है मानो बड़ा ठोस है । किसी चीजका उसमें प्रवेश सम्भव नहीं है । लोहेमें तो आग प्रविष्ट हो सकती है; परंतु आनन्दराशिमें कभी दुःख किंचिन्मात्र भी प्रविष्ट नहीं हो सकता । परमात्मामें परमात्माके सिवाय और किसी पदार्थका प्रवेश सम्भव ही नहीं है, इतना घन है परमात्मा । इस प्रकार ब्रह्मका स्वरूप बताया ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे