।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि

फाल्गुन कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७१, सोमवार
मानसमें नाम-वन्दना

      

(गत ब्लॉगसे आगेका)

सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें’‒रत्नका मूल्य प्रकट हो जाता है । कैसे ? लाखों रुपयोंका बहुत बड़ा कीमती रत्न हो; परंतु पासमें रहनेपर भी उससे कोई लाभ नहीं मिलता, जबतक उसका मूल्य न ले लिया जाय । पासमें रहनेपर भी उससे रोटी नहीं मिलती, कपड़ा नहीं मिलता, मकान नहीं मिलता, सवारी नहीं मिलती, दवाई नहीं मिलती; पर उस रत्नको बेचकर दाम खड़े कर लिये जायँ तो रुपये खर्च करनेपर किसी बातकी कमी नहीं रहती । अकेला रत्न पड़ा रहे तो कुछ काम नहीं निकलता । ऐसे दरिद्रता दूर नहीं होती । ऐसे ही जबतक वह आनन्द प्रकट नहीं किया जाता, अर्थात् नाम नहीं लिया जाता, तबतक वह आनन्द प्रकट नहीं होता । नामसे वह प्रकट हो जाता है; फिर किसी बातकी कमी नहीं रहती । जाननेसे उसका मूल्य प्रकट होता है ।

हमने एक कहानी सुनी है । एक संत बाबा थे । वे कहीं भिक्षाके लिये गये । जाकर आवाज लगायी राम ! राम ! जिसके घर बाबाजी गये थे, वह रोने लग गया । बाबाजीने पूछा‒‘भैया ! रोते क्यों हो ? वह बोला‒ ‘महाराज ! भगवान्‌ने मेरेको ऐसे ही पैदा कर दिया है । तीन दिन हो गये चूल्हा नहीं जला है । घरमें कुछ खानेको नहीं है । भूखे मरता हूँ । आज संत पधारे, भिक्षा देनेको मन भी करता है, पर देऊँ कहाँसे ? संतने कहा‒‘तू घबराता क्यों है ? तू तो बड़ा भारी धनी है । तू चाहे तो त्रिलोकीको धनी बना सकता है ।’ वह गृहस्थी कहता है‒‘महाराज ! आप आशीर्वाद दे दें तो ऐसा हो जाऊँ । अभी तो मेरी परिस्थिति ऐसी है कि मुझे खानेको अन्न नहीं मिलता । आप कहते हैं कि लोगोंको धनी बना सकता है, तो यह कैसे सम्भव है महाराज !’

बाबाने संकेत करते हुए कहा‒‘वह सामने क्या वस्तु पड़ी है ? वह तो सिलबट्टा है महाराज ! पत्थर है, जब रोटी मिल जाती है तो इसपर चटनी पीस लेते हैं ।’ बाबा कहते हैं‒‘वह पत्थर नहीं है, वह पारस है । पारसका नाम सुना है? हाँ सुना है ।’ तो पूछा‒‘पारस क्या होता है महाराज ! ‘लोहेको छुआनेसे सोना हो जाय, वह पारस होता है’, ‘पर महाराज ! यदि यह पारस होता तो मैं भूखा क्यों मरता ? संत कहते हैं कि तू भूखा इसलिये मरता है कि उसको जानता नहीं । घरमें कुछ लोहा है क्या ? ‘हाँ महाराज ! लोहेका चिमटा है । रसोई बनाते हैं तो चिमटा काममें आता है ।’ वह ले आया तथा उसको पारससे छुआया, पर लोहा सोना बना नहीं । बाबाने कहा‒‘इसपर जमी हुई चटनी, मिर्च, मिट्टी साफ कर दे ।’ उसे साफ करके छुआया तो चिमटा सोना बन गया । संत बोले‒बता, अब तू धनी है कि नहीं ! लोहेको सोना बनानेवाला पारस मिल गया, अब धनी होते कितनी देर लगे । पारस तो पासमें ही था, परंतु जानकारी न होनेसे उसे मामूली पत्थर समझता था । अब वह केवल आप ही धनी नहीं बना, बल्कि चाहे जिसको धनी बना दे ।

   (अपूर्ण)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे