।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७१, मंगलवार
मानसमें नाम-वन्दना



(१६ फरवरीके ब्लॉगसे आगेका)

इसी तरह भगवान्‌का नाम मौजूद है, भगवान् विद्यमान हैं । रामनाम लेते भी हैं; परंतु ऊपर-ऊपरसे लेते हैं, भीतरी भावसे नहीं लेते । निष्कपट होकर सरलतापूर्वक भीतरसे लिया जाय तो नाम महाराज दुनियामात्रका दुःख दूर कर दें । संत-महात्मा, भगवान्‌के प्रेमी भक्त जहाँ जाते हैं, वहाँ दुनियाका दुःख दूर हो जाता है । उनके दर्शन, भाषण, चिन्तनसे दुःख दूर होता है, धन देनेसे दूर नहीं होता । जिनके पास लाखों-करोड़ोंकी सम्पत्ति है, बहुत वैभव है, वे भीतरसे जलते रहते हैं; परंतु नाम-प्रेमी संत-महात्माओंके दर्शनसे वे भी निहाल हो जाते हैं । संतोंके मिलनेसे शान्ति मिलती है; क्योंकि नाम जपनेसे उनमें आनन्दराशि प्रभु प्रकट हो गये । प्रभुके प्रकट होनेसे उन संतोंमें यह विलक्षणता आ जाती है ।

निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार ।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २३)

सगुणसे नामकी श्रेष्ठता

ऊपर गोस्वामीजीने नामको निर्गुण-स्वरूपसे बड़ा बताया और अब अपने विचारके अनुसार सगुण रामसे नामको बड़ा बताते हैं । निर्गुण-स्वरूपका उपक्रम करते हुए मोरे मत बड़ नामु दुहू तें ।’ दोनोंसे बड़ा बताया और यहाँ बीचमें निर्गुण-स्वरूपका उपसंहार करते हुए कहते हैं निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार ।’ इस प्रकार निर्गुणसे नाम बड़ा बताया और यहाँसे आगे सगुण-स्वरूपका उपक्रम करते हुए कहउँ नामु बड़ राम तें’ सगुणसे नामको बड़ा बताते हैं । अब ध्यान देना ! सगुणसे बड़ा नामको बताते हुए तुलसीदासजी महाराज पूरी रामायणका वर्णन करते हैं । रामजीने क्या किया और नाम महाराजने क्या किया‒ऐसे दोनोंकी तुलना करते हैं ।

राम भगत हित  नर तनु धारी ।
सहि संकट किए साधु सुखारी ॥
नामु  सप्रेम   जपत  अनयासा ।
भगत  होहिं  मुद मंगल बासा ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २४ । १-२)

गोस्वामीजी कहते हैं कि रामजीने भक्तोंके हितके लिये मनुष्यरूप धारण किया । नाना प्रकारके कष्ट स्वयं सहे और संतोंको सुखी किया । रामजीने भक्तोंके लिये शरीर धारण करके काम किया । जरा गहरा विचार करें ! संत कभी दुःखी होते हैं ? वे सदा सुखी ही रहते हैं । सगुण भगवान्‌के दर्शन करके वे विशेष प्रसन्न हो जाते हैं, यह बात तो कह सकते हैं । दूसरे, भगवान्‌ने स्वयं जा-जाकर उनके यहाँ दर्शन दिये और आप स्वयं वन-वन घूमे, नाना प्रकारके कष्ट सहे; परंतु नाम महाराजको कहीं आना-जाना नहीं पड़ता । किसी तरहका कष्ट सहन नहीं करना पड़ता । जहाँ हो, वहीं बैठे-बैठे नाम जपनेसे सब प्रकारके मंगल हो जाते हैं, आनन्द छा जाता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे