।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
वैशाख कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७२, रविवार
भगवत्तत्त्व



 (गत ब्लॉगसे आगेका)

साध्यतत्त्वकी एकरूपता

जैसे नेत्र तथा नेत्रोंसे दीखनेवाला दृश्य‒दोनों सूर्यसे प्रकाशित होते हैं, वैसे ही बहिःकरण, अन्तःकरण, विवेक आदि सब उसी परम प्रकाशक तत्त्वसे प्रकाशित होते हैं‒‘तस्य भासा सर्वमिदं विभाति’ (श्वेताश्वतर ६ । १४) । जो वास्तविक प्रकाश अथवा तत्त्व है, वही सम्पूर्ण दर्शनोंका आधार है । जितने भी दार्शनिक हैं, प्रायः उन सबका तात्पर्य उसी तत्त्वको प्राप्त करनेमें है । दार्शनिकोंकी वर्णन-शैलियाँ तथा साधन-पद्धतियाँ तो अलग-अलग हैं, पर उनका तात्पर्य एक ही है । साधकोंमें रुचि, विश्वास और योग्यताकी भिन्नताके कारण उनके साधनोंमें तो भेद हो जाते हैं, पर उनका साध्यतत्त्व वस्तुतः एक ही होता है ।

नारायण अरु नगरके, रज्जब राह अनेक ।
भावे आवो किधरसे,  आगे अस्थल एक ॥

दिशाओंकी भिन्नताके कारण नगरमें जानेके अलग-अलग मार्ग होते हैं । नगरमें कोई पूर्वसे, कोई पश्रिमसे, कोई उत्तरसे और कोई दक्षिणसे आता है; परन्तु अन्तमें सब एक ही स्थानपर पहुँचते हैं । इसी प्रकार साधकोंकी स्थितिकी भिन्नताके कारण साधन-मार्गोंमें भेद होनेपर भी सब साधक अन्तमें एक ही तत्त्वको प्राप्त होते हैं । इसीलिये संतोंने कहा है‒

पहुँचे पहुँचे एक मत, अनपहुँचे मत और ।
संतदास घड़ी अरठकी,  ढुरे एक ही ठौर ॥

प्रत्येक मनुष्यकी भोजनकी रुचिमें दूसरेसे भिन्नता रहती है; परंतु भूख’ और तृप्ति’ सबकी समान ही होती है अर्थात् अभाव और भाव सबके समान ही होते हैं । ऐसे ही मनुष्योंकी वेश-भूषा, रहन-सहन, भाषा आदिमें बहुत भेद रहते हैं; परंतु रोना’ और हँसना’ सबके समान ही होते हैं अर्थात् दुःख और सुख सबको समान ही होते हैं । ऐसा नहीं होता कि यह रोना या हँसना तो मारवाड़ी है, यह गुजराती है, यह बँगाली है आदि ! इसी प्रकार साधन-पद्धतियोमें भिन्नता रहनेपर भी साध्यकी अप्राप्तिका दुःख’ और प्राप्तिका आनन्द’ सब साधकोंको समान ही होते हैं ।

वह परमात्मतत्त्व ही ब्रह्मारूपसे सबको उत्पन्न करता है, विष्णुरूपसे सबका पालन-पोषण करता है और रुद्ररूपसे सबका संहार करता है‒‘भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥’ (गीता १३ । १६) । वही तत्त्व अनेक अवतार लेकर, अनेक रूपोंमें लीला करता है । इस प्रकार अनेक रूपोंसे दीखनेपर भी वह तत्त्व वस्तुतः एक ही रहता है और तत्त्व-दृष्टिसे एक ही दीखता है । इस तत्त्वदृष्टिकी प्राप्तिको ही दार्शनिकोंने मोक्ष, परमात्मप्राप्ति, भगवत्प्राप्ति, तत्त्वज्ञान आदि नामोंसे कहा है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे