।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, सोमवार
मानवशरीरका सदुपयोग



(गत ब्लॉगसे आगेका)

सत्संग करनेवालोंका अनुभव है कि भोग और संग्रहकी आसक्ति कम होती है और मिटती है । जैसे, हमारी वृत्तिमें क्रोध ज्यादा था । अतः थोड़ी-सी बातमें क्रोध आ जाता था, बड़े जोरसे आता था और काफी देरतक रहता था । परन्तु सत्संग करते-करते वह क्रोध कम होता है, थोड़ी-सी बातमें नहीं आता, जोरसे नहीं आता और कम देर ठहरता है । जब छोटी-छोटी कई बातें इकट्ठी हो जाती हैं, तब सहसा किसी बातपर जोरसे क्रोधका भभका आता है । परन्तु सत्संग करते-करते वह भी मिट जाता है । क्रोधका स्वरूप है कि जिसपर क्रोध आता है, उसका अनिष्ट चाहता है । सत्संग करते-करते किसीका अनिष्ट करनेकी चाहना मिट जाती है । सत्संग करनेवालेको कभी क्रोध आ जाय तो उसमें होश रहता है और वह नरक देनेवाला नहीं होता । काम, क्रोध और लोभ‒ये तीनों नरकोंके दरवाजे हैं[*] । इनमें फँसे हुए मनुष्य सीधे नरकोंमें जाते हैं । उनको नरकोंमें जानेसे कोई अटकानेवाला नहीं है । परन्तु सत्संग करनेवालोंमें काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि दोष कम हो जाते हैं । वह काम-क्रोधादिके वशीभूत नहीं होता । वह अन्यायपूर्वक, झूठ, कपट, जालसाजी, बेईमानीसे धन इकट्ठा नहीं करता । वह उतना ही लेता है, जितनेपर उसका हक लगता है । पराये हककी चीज नहीं लेता । काम-क्रोधादिके वशीभूत होनेसे अन्याय-मार्गमें प्रवेश हो जाता है, जिसके फलस्वरूप नरकोंकी प्राप्ति होती है । परन्तु सत्संग करनेसे ये काम-क्रोधादि दोष क्रमशः पत्थर, बालू, जल और आकाशकी लकीरकी तरह कम होते-होते मिट जाते हैं । पत्थरपर जो लकीर पड़ जाती है, वह कभी मिटती नहीं । बालूकी लकीर जब हवा चलती है, तब बालूसे ढककर मिट जाती है । जलपर लकीर खिंचती हुई तो दीखती है, पर जलपर लकीर बनती नहीं । परन्तु आकाशमें लकीर खींचें तो केवल अँगुली ही दीखती है, लकीर बनती ही नहीं । इस प्रकार जब काम-क्रोधादि दोष किंचिन्मात्र भी नहीं रहते, तब बन्धन मिट जाता है और परमात्मामें स्थिति हो जाती है ।

इस प्रकार सत्संग करनेसे दोष कम होते हैं । अगर दोष कम नहीं होते तो असली सत्संग नहीं मिला है । भगवान्‌की कथा तो किसीसे भी सुनें, सुननेसे लाभ होता है । अगर कथा कहनेवाला प्रेमी भक्त हो तो बहुत विलक्षणता आती है । परन्तु तात्त्विक विवेचन जीवन्मुक्त, तत्त्वज्ञ महापुरुषसे सुननेपर ही लाभ होता है । जीवन्मुक्त, तत्वज्ञ सन्त-महात्माओंके संगसे बहुत विलक्षण एवं ठोस लाभ होता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
       ‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ पुस्तकसे


[*] त्रिविधं   नरकस्येदं     द्वारं    नाशनमात्मनः ।
    कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥
                                              (गीता १६ । २१)