।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
अधिक आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७२, मंगलवार
बालहितोपदेश-माला


१‒सबको सूर्योदयसे पहले उठना चाहिये ।
२‒उठते ही भगवान्‌का स्मरण करना तथा ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥’ इस प्रकार स्तुति करनी चाहिये ।
३‒ अपने बड़ोंको प्रणाम करना चाहिये ।
४-शौच-स्नान करके दंड-बैठक, दौड़-कुश्ती आदि शारीरिक और आसन-प्राणायाम आदि यौगिक व्यायाम करने चाहिये ।
५‒प्रातःकाल ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥’‒इस मन्त्रकी कम-से-कम एक माला अवश्य जपनी चाहिये । और जिनका यज्ञोपवीत हो चुका है, उनको सूर्योदयसे पूर्व संध्या और कम-से-कम एक माला गायत्री-जप अवश्य करना चाहिये ।
६‒श्रीमद्भगवद्गीताके कम-से-कम एक अध्यायका नित्य अर्थसहित पाठ करना चाहिये । इसके लिये ऐसा क्रम रखा जाय तो अच्छा है कि प्रतिपदा तिथिको पहले अध्यायका, द्वितीयाको दूसरेका, तृतीयाको तीसरेका‒इस तरह एकादशी तिथिको ११वें अध्यायतक पाठ करके, द्वादशीको १२वें और १३वें अध्यायोंका, त्रयोदशीको १४वें और १५वेंका, चतुर्दशीको १६वें और १७वेंका तथा अमावस्या या पूर्णिमाको १८वें अध्यायका पाठ कर ले । इस प्रकार पंद्रह दिनोंमें अठारहों अध्यायका पाठ-क्रम रखकर एक महीनेमें सम्पूर्ण गीताके दो पाठ पूरे कर लेने चाहिये । तिथिक्षय हो तब ७वें और ८वें अध्यायोंका पाठ एक साथ कर लेना तथा तिथि-वृद्धि होनेपर १६वें और १७वें अध्यायका पाठ अलग-अलग दो दिनमें कर लेना चाहिये ।
७‒विद्यालयमें ठीक समयपर पहुँच जाना और भगवत्-स्मरण-पूर्वक मन लगाकर पढ़ना चाहिये । किसी प्रकारका ऊधम न करते हुए मौन रहकर भगवान्‌के नामका जप और स्वरूपकी स्मृति रखते हुए प्रतिदिन जाना-आना चाहिये ।
८‒विद्यालयकी स्तुति-प्रार्थना आदिमें अवश्य शामिल होना और उनको मन लगाकर प्रेमभावपूर्वक करना चाहिये; क्योंकि मन न लगानेसे समय तो खर्च हो ही जाता है और लाभ होता नहीं ।
९‒पिछले पाठको याद रखना और आगे पढ़ाये जाने-वाले पाठको उसी दिन याद कर लेना उचित है, जिससे पढ़ाईके लिये सदा उत्साह बना रहे ।
१०‒पढ़ाईको कभी कठिन नहीं मानना चाहिये ।
११‒अपनी कक्षामें सबसे अच्छा बननेकी कोशिश करनी चाहिये ।
१२‒किसी विद्यार्थीको पढ़ाईमें अपनेसे अग्रसर होते देखकर खूब प्रसन्न होना चाहिये और यह भाव रखना चाहिये कि यह अवश्य उन्नति कर रहा है, इससे मुझे भी पढ़कर उन्नति करनेका प्रोत्साहन एवं अवसर प्राप्त होगा ।
१३‒अपने किसी सहपाठीसे डाह नहीं करनी चाहिये और न यही भाव रखना चाहिये कि वह पढ़ाईमें कमजोर रह जाय, जिससे उसकी अपेक्षा मुझे लोग अच्छा कहें ।
१४‒किसी भी विद्या अथवा कलाको देखकर उसमें दिलचस्पीके साथ प्रविष्ट होकर समझनेकी चेष्टा करनी चाहिये; क्योंकि जानने और सीखनेकी उत्कण्ठा विद्यार्थियोंका गुण है ।
१५‒अपनेको उच्च विद्वान् मानकर कभी अभिमान न करना चाहिये, क्योंकि इससे आगे बढ़नेमें बड़ी रुकावट होती है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे