।। श्रीहरिः ।।


अधिक आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, बुधवार
श्राद्धकी अमावस्या
बालहितोपदेश-माला


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
१६‒नित्यप्रति बड़ोंकी तथा दीन-दुःखी प्राणियोंकी कुछ-न-कुछ सेवा अवश्य करनी चाहिये ।
१७‒किसी भी अंगहीन, दुःखी, बेसमझ, गलती करनेवालेको देखकर हँसना नहीं चाहिये ।
१८‒मिठाई, फल आदि खानेकी चीजें प्राप्त हों तो उन्हें दूसरोंको बाँटकर खाना चाहिये ।
१९‒न्यायसे प्राप्त हुई चीजको ही काममें लाना चाहिये ।
२०‒दूसरेकी चीज उसके देनेपर भी न लेनेकी चेष्टा रखनी चाहिये ।
२१‒हर एक आदमीके द्वारा स्पर्श की हुई मिठाई आदि अन्नकी बनी खाद्य वस्तुएँ नहीं खानी चाहिये ।
२२‒कोई भी अपवित्र चीज नहीं खानी चाहिये ।
२३‒कोई भी खाने-पीनेकी चीज ईश्वरको अर्पण करके ही उपयोगमें लेनी चाहिये ।
२४‒भूखसे कुछ कम खाना चाहिये ।
२५‒सदा प्रसन्नतापूर्वक भोजन करना चाहिये ।
२६‒भोजनके समय क्रोध, शोक, दीनता, द्वेष आदि भाव मनमें लाना उचित नहीं, क्योंकि इनके रहनेसे भोजन ठीक नहीं पचता ।
२७‒भोजन करनेके पहले दोनों हाथ, दोनों पैर और मुँह‒इन पाँचोंको अवश्य धो लेना चाहिये ।
२८‒भोजनके पहले और पीछे आचमन जरूर करना चाहिये ।
२९‒भोजनके बाद कुल्ले करके मुँह साफ करना उचित है; क्योंकि दाँतोंमें अन्न रहनेसे पायरिया आदि रोग हो जाते हैं ।
३०‒चलते-फिरते और दौड़ते समय एवं अशुद्ध अवस्थामें तथा अशुद्ध जगहमें खाना-पीना नहीं चाहिये; क्योंकि खाते-पीते समय सम्पूर्ण रोम-कूपोंसे शरीर आहार ग्रहण करता है ।
३१‒स्नान और ईश्वरोपासना किये बिना भोजन नहीं करना चाहिये ।
३२‒लहसुन, प्याज, अंडा, मांस, शराब, ताड़ी आदिका सेवन कभी नहीं करना चाहिये ।
३३‒लैमनेड, सोडा और बर्फका सेवन नहीं करना चाहिये; क्योंकि इनसे संसर्ग-जन्य रोगादि आनेकी भी बहुत सम्भावना है ।
३४‒उत्तेजक पदार्थोंका सेवन कदापि न करें ।
३५‒मिठाई, नमकीन, बिस्कुट, दूध, दही, मलाई, चाट आदि बाजारकी चीजें नहीं खानी चाहिये; क्योंकि दूकानदार लोभवश स्वास्थ्य और शुद्धिकी ओर ध्यान नहीं देते, जिससे बीमारियाँ होनेकी सम्भावना रहती है ।
३६‒बीड़ी, सिगरेट, भाँग, चाय आदि नशीली चीजोंका सेवन कभी न करें ।
३७-अन्न और जलके सिवा किसी और चीजकी आदत नहीं डालनी चाहिये ।
३८‒दाँतोंसे नख नहीं काटना चाहिये ।
३९‒दातुन, कुल्ले आदि करनेके समयको छोड़कर अन्य समय मुँहमें अँगुली नहीं देनी चाहिये ।
४०‒पुस्तकके पत्रोंको अँगुलीमें थूक लगाकर नहीं उलटना चाहिये ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे