।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
अधिक आषाढ़ अमावस्या, वि.सं.२०७२, गुरुवार
अधिकमास समाप्त
बालहितोपदेश-माला


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
४१‒किसीकी भी जूठन खाना और किसीको खिलाना निषिद्ध है ।
४२‒रेल आदिके पाखानेके नलका अपवित्र जल मुँह धोने, कुल्ला करने या पीने आदिके काममें कदापि न लेना चाहिये ।
४३‒कभी झूठ न बोलें । सदा सत्य भाषण करें ।
४४‒कभी किसीकी कोई भी चीज न चुरावे । परीक्षामें नकल करना भी चोरी ही है तथा नकल करनेमें मदद देना चोरी कराना है । इससे सदा बचना चाहिये ।
४५‒माता, पिता, गुरु आदि बड़ोंकी आज्ञाका उत्साहपूर्वक तत्काल पालन करे । बड़ोंके आज्ञा-पालनसे उनका आशीर्वाद मिलता है, जिससे लौकिक और पारमार्थिक उन्नति होती है ।
४६‒किसीसे लड़ाई न करे ।
४७‒किसीको गाली न बके ।
४८‒अश्लील गंदे शब्द उच्चारण न करे ।
४९‒किसीसे भी मार-पीट न करे ।
५०‒कभी रूठे नहीं और जिद्द भी न करे ।
५१‒कभी क्रोध न करे ।
५२‒दूसरोंकी बुराई और चुगली न करे ।
५३‒अध्यापकों एवं अन्य गुरुजनोंकी कभी हँसी-दिल्लगी न उड़ाये, प्रत्युत उनका आदर-सत्कार करे तथा जब पढ़ानेके लिये अध्यापक आयें और जायें, तब खड़े होकर नमस्कार करके उनका सम्मान करे ।
५४‒समान अवस्थावाले और छोटोंसे प्रेमपूर्वक बर्ताव करे ।
५५‒नम्रतापूर्ण, हितकर, थोड़े और प्रिय वचन बोले ।
५६‒सबके हितकी चेष्टा करे ।
५७‒सभामें सभ्यतासे आज्ञा लेकर नम्रतापूर्वक चले । किसीको लाँघकर न जाय ।
५८‒सभा या सत्संगमें जाते समय अपने पैरका किसी दूसरेसे स्पर्श न हो जाय, इसका ध्यान रखे, अगर भूलसे किसीके पैर लग जाय तो उससे हाथ जोड़कर क्षमा माँगे ।
५९‒सभामें बैठे हुए मनुष्योंके बीचमें जूते पहनकर न चले ।
६०‒सभामें भाषण या प्रश्रोत्तर करना हो तो सभ्यतापूर्वक करे तथा सभामें अथवा पढ़नेके समय बातचीत न करे ।
६१‒सबको अपने प्रेमभरे व्यवहारसे संतुष्ट करनेकी कला सीखे ।
६२‒आपसी कलहको पास न आने दे । दूसरोंके कलहको भी अपने प्रेमभरे बर्ताव और समझानेकी कुशलतासे निवृत्त करनेका प्रयत्न करे ।
६३‒कभी प्रमाद और उद्दण्डता न करे ।
६४‒पैर, सिर और शरीरको बार-बार हिलाते रहना आदि आदतें बुरी हैं, इनसे बचे ।
६५‒कभी किसीका अपमान और तिरस्कार न करे ।
६६‒कभी किसीका जी न दुखाये ।
६७‒कभी किसीसे दिल्लगी न करे ।

६८‒शौचाचार, सदाचार और सादगीपर विशेष ध्यान रखे । 

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे