।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
अधिक आषाढ़ पूर्णिमा, वि.सं.२०७२, गुरुवार
पूर्णिमा
भगवत्-तत्त्व


  (१७ जून २०१५ के ब्लॉगसे आगेका)
जैसे सूर्यका प्रकाश होता है; भगवान्‌के विग्रहका भी उसी तरह प्रकाश होता है; किंतु उसमें तीक्ष्णता, उष्णता और दुर्निरीक्ष्यता नहीं होती । भगवान्‌के विग्रहका प्रकाश सूर्यसे भी बहुत अधिक होता है, किंतु सूर्यकी तरह तीक्ष्णता नहीं होती; वह तो चन्द्रमाकी तरह नहीं, चन्द्रमासे भी अत्यन्त विलक्षण, सौम्य, शान्त, शीतल और नेत्राकर्षक होता है । वास्तवमें वह सूर्य-चन्द्रमा-जैसा ही नहीं है और न उसे सूर्य-चन्द्रमा प्रकाशित ही कर सकते हैं, भगवान्‌का प्रकाश इनसे बहुत विलक्षण होता है । भगवान् कहते हैं‒

न तद् भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः ।
यद् गत्वा न  निवर्तन्ते   तद्धाम  परमं  मम ॥
                                            (गीता १५ । ६)

जिस परमपदको प्राप्त होकर मनुष्य लौटकर संसारमें नहीं आते‒उस स्वयंप्रकाश परमपदको न सूर्य प्रकाशित कर सकता है, न चन्द्रमा और न अग्नि ही; वही मेरा परमधाम है (जो कि भगवत्स्वरूप ही है) ।’

वास्तवमें सूर्य-चन्द्रमा आदि भी तो भगवान्‌के प्रकाशसे ही प्रकाशित होते हैं, तब वे उसे कैसे प्रकाशित कर सकते हैं ? क्योंकि उनमें वह तेज भी भगवान्‌का ही तेज है ।

यदादित्यगतं  तेजो    जगद्  भासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत् तेजो विद्धि मामकम् ॥
                                                 (गीता १५ । १२)

सूर्यमें स्थित जो तेज सम्पूर्ण जगत्‌को प्रकाशित करता है तथा जो तेज चन्द्रमामें है और जो अग्निमें है उसको तू मेरा ही तेज जान ।’

सूर्य, चन्द्रमाका प्रकाश तो पार्थिव पदार्थोंसे आवृत हो जाता है, अतः उससे छाया भी पड़ती है, परन्तु भगवद्विग्रहका प्रकाश, चाहे पहाड़ भी बीचमें क्यों न आ जाय, आवृत नहीं होता और न उससे छाया ही पड़ती है । वह प्रकाश दिव्य चिन्मय होता है और सूर्य-चन्द्रमाका प्रकाश भौतिक होता है ।

चितिशक्ति स्वयं आत्मस्वरूप है । वह बुद्धितत्त्वसे जाननेपर ज्ञानरूपसे प्रतीत होती है और वही नेत्ररूपसे दीखनेपर प्रकाशरूपसे प्रकट दीखने लगती है, तत्त्वतः वह चिति, भाति और प्रकाश एक ही वस्तु है ।

प्रेम-तत्त्व

वे निर्गुण आनन्दमय सर्वत्र परिपूर्ण परमात्मा ही प्रेमरूपसे साकार विग्रहके रूपमें प्रकट होते हैं । परमात्माका प्रेम बड़ा विलक्षण है । परमात्माका दिव्य विग्रह प्रेममय होता है, जिसके दर्शन करनेसे खर, दूषण, जरासन्ध-जैसे विरोधी जीवोंके भी चित्त उस ओर जबरन् खींचे जाते हैं । उनके उस प्रेममय विग्रहमें विलक्षण आकर्षण होता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे