।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
शुद्ध आषाढ़ शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
मिला हुआ और देखा हुआ‒संसार


(गत ब्लॉगसे आगेका)
हम इस बातको जानते हैं कि संसार पहले नहीं था और फिर नहीं रहेगा, फिर भी इसको मानते नहीं । जो जानते हैं, उसको ही मानने लग जायँ‒यह जाने हुएका आदर है । परन्तु जो जानते हैं, उसको मानते नहीं‒यह जाने हुएका निरादर है । जाने हुएके निरादरसे ही हम दुःख पा रहे हैं । अतः जाने हुएका आदर करें । यह संसार तो रहेगा नहीं, पर इससे लाभ ले लें । मिले हुए पदार्थोंको दूसरोंकी सेवामें लगा दें‒यही लाभ लेना है । दर्पणमें हम मुख देखते हैं तो उलटा दीखता है । जैसे, हमारा मुख दक्षिणकी तरफ है तो दर्पणमें हमारा मुख उत्तरकी तरफ दीखता है । हमारा दायाँ भाग दर्पणमें बायाँ भाग हो जाता है और हमारा बायाँ भाग दर्पणमें दायाँ हो जाता है । जैसे दर्पणमें उलटा दीखता है, ऐसे ही यह संसार उलटा दीखता है । अतः जो लोभमें आकर अपने लिये संग्रह करते हैं, वे अपनी हानि करते हैं । परंतु दीखता उलटा ही है‒जितना ले लेते हैं, उतना तो लाभ दीखता है और जितना दे देते हैं, उतनी हानि दीखती है । अब उलटा ही दीखता है, इस कारण कही हुई बात भी जँचती नहीं, उलटी दीखती है । इसलिये कहा है‒

खायो  सोई  ऊबर्‌यो,  दीन्हौ  सोई  साथ ।
जसवँत धर पोढाणिया माल बिराने हाथ ॥

दिया हुआ तो हमारे साथ चलेगा और लिया हुआ यहीं रह जायगा । फिर भी लेनेकी ही चेष्टा होती है, देनेकी नहीं ! हमारा स्वार्थ सिद्ध हो जाय, यह चेष्टा तो होती है, पर यह चेष्टा नहीं होती कि दूसरोंको दे दें, दूसरोंका हित कर दें, दूसरोंका स्वार्थ सिद्ध कर दें । दूसरोंका काम करना बुरा दीखता है, जब कि बात यह उलटी है । उलटा दीखना बंद हो जाय और सुलटा दीखने लग जाय‒इसीके लिये हमलोग यहाँ इकट्ठे हुए हैं ।

न तो मिला हुआ ठहरेगा और न दीखनेवाला ठहरेगा । वहम यह होता है कि यह तो मिला हुआ है और यह दीख रहा है । ये दोनों ही नहीं रहेंगे । इनमें जो परिपूर्ण हैं, वे एक परमात्मा ही रहेंगे । उन परमात्माका ही आश्रय लिया जाय, उनका ही भजन किया जाय, उनको ही माना जाय, उनका ही चिन्तन किया जाय, तो निहाल हो जायँगे । अगर मिले हुए और देखे हुएके लोभमें फँस जायेंगे तो धोखा हो जायगा ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे