।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
शुद्ध आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, गुरुवार
व्रत-पूर्णिमा
सन्त-चरण-रजका तात्पर्य


(गत ब्लॉगसे आगेका)
कुछ लोग सोचते हैं कि हम सन्तोंकी चरण-रज ले लेंगे तो हमारा कल्याण हो जायगा; अतः यदि सन्त नहीं लेने देंगे तो छिपकर अथवा चोरीसे ले लेंगे भाई ! इससे कल्याण नहीं होगा, उद्धार नहीं होगा अगर उन (सन्तकी चरण-रजसे उद्धार हो जाय तो उस चरण-रजको इकट्ठा कर पोटली बाँधकर कुएँमें डाल दिया जाय ताकि जो भी उस जलको पीयेंगे उन सबका उद्धार हो जायगापरन्तु यह बिलकुल फालतू (निरर्थक) बात है धूलमें धूल है, अर्थात् धूलमें क्या पड़ा है ! तात्पर्य यह है कि सन्तोंका इतना माहात्म्य है कि उनकी स्पर्श की हुई हवाचरण-रज आदि परम पवित्र होते हैं उनके दर्शन भी परम पवित्र करनेवाले होते हैं पर मूल माहात्म्य तो भाई, उनके ज्ञानका है

सर्वज्ञ मुनिने संक्षेप-शारीरिक-भाष्यमें लिखा है

यत्पादपंकजरजःश्रयणं विना मे
सन्नप्यसन्निव परः पुरुषः पुरासीत्
यत्यादपंकजरजः श्रयणादिदानीं
नासीन्न चास्ति भविष्यति भेदबुद्धिः

‘मैंने जबतक उन महापुरुषोंकी चरण-रज्जीका आश्रय नहीं लिया, तबतक, होता हुआ भी, वह सच्चिदानन्दघन परमात्मा, नहींकी तरह था अर्थात् भगवान् है कि नहीं, पता नहींऐसी दशा थी; परन्तु जब मैंने उनकी चरण-रज्जीको स्वीकार किया तो मालूम पड़ा कि भेद-बुद्धि थी, है और होगी ।’

यहाँ चरण-रज्जीको स्वीकार करनेका तात्पर्य उनकी अनुकूलताको स्वीकार करना है

सन्तोंकी कृपा कब होती है ? उनके मनके अनुकूल बननेसे जैसे बछड़ा आकर दूध पीने लगता है तो गायके शरीरमें रहनेवाला दूध थनोंमें जाता है, ऐसे ही जब कोई श्रद्धा-प्रेमपूर्वक सन्त-महापुरुषसे प्रश्न करता है तो उनका समस्त ज्ञान बुद्धि, मन और वाणीमें आने लगता है, टपकने लगता है यह सब उनके अनुकूल बननेकी महिमा है, धूल अथवा मिट्टीकी महिमा नहीं है

इसलिये भाई ! वे महापुरुष जिस ज्ञानसे बने हैं, उनसे वह ज्ञान लेना चाहिये जैसे कपड़ेके बाजारमें कपड़ा और साग-पत्तीके बाजारमें साग-पत्ती मिलती है; ऐसे ही वास्तविक तत्त्व तो उस तत्त्वको जाननेवाले सन्त जहाँ हैंउस बाजारमें ही मिलेगा चरण-रज लेनेका तात्पर्य उस ‘तत्त्व’ को लेनेमें है, पर लोग रज्जी लेनेमें लगे हुए हैं । अरे ! उनकी चरण-रज्जीका इतना माहात्म्य है तो उन स्वयंका कितना माहात्म्य होगा ? उनके ‘ज्ञानका’ कितना माहात्म्य होगा ? वे कितने विशेष जानकार होंगे ? वह जानकारी हमें ग्रहण करनी चाहिये

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगकी विलक्षणता’ पुस्तकसे