।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
अधिक आषाढ़ कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७२, सोमवार
भगवत्-तत्त्व


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
वे नित्य ज्ञानस्वरूप भगवान् अपने ऊपर योगमायाका परदा रखकर प्रकट होते हैं, पर भगवान्‌का दिव्य ज्ञान उससे जरा भी आवृत नहीं होता । प्रेमी भक्तोंके लिये भी वह परदा नहीं रहता, वे तो उनके चिन्मय स्वरूपका दर्शन कर ही लेते हैं । इस आवरणसे तो भगवान्‌की भक्तिसे रहित मूढ़लोग ही उन्हें नहीं जान पाते ।

इस श्लोकमें भगवान्‌ने अपने निर्गुण-निराकार, सगुण-निराकार एवं सगुण-साकार-स्वरूपकी एकता की है । भगवान् श्रीकृष्ण बतलाते हैं कि वह निर्गुण सच्चिदानन्दघन सर्वव्यापी परमात्मा मैं ही हूँ और मैं ही समय-समयपर साकाररूपमें प्रकट होता हूँ । गीतामें कहा है‒

ब्रह्मणो  हि   प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य  च ।
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च ॥
                                                        (१४ । २७)

उस अविनाशी परब्रह्मका और अमृतका तथा नित्य-धर्मका और अखण्ड एकरस आनन्दका आश्रय मैं हूँ ।’ यहाँ भगवान्‌ने अपने जिन-जिन रूपोंका वर्णन किया है, उनमेंसे अगर एक भी रूपके तत्त्वका ज्ञान हो जाय तो मनुष्य जीवन्मुक्त और कृतकृत्य हो जाता है । भगवान्‌ने गीतामें अपने किसी एक रूपको भी जाननेवालेको असम्मूढ‒ज्ञानवान् और न जाननेवालेको मूढ बतलाया है, यह बात नीचे लिखे उद्धरणोंसे स्पष्ट की जाती है ।

यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढः स मर्त्येषु   सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥
                                       (गीता १० । ३)

यहाँ भगवान्‌ने अपने अज’जन्मरहित रूपको जाननेवाले‒का सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त होना बतलाया है तथा उसे सब मनुष्योंमें ‘असम्मूढ’‒ज्ञानवान् बतलाया है ।

मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥
                                                    (गीता ७ । २५)

यहाँ अज’ नहीं जाननेवालेको मूढ़ कहा है ।

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो   ज्ञात्वा  भूतादिव्ययम् ॥
                                                   (गीता ९ । १३)

यो लोकत्रयमाविश्य  बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स  सर्वविद्भजति  मां  सर्वभावेन  भारत ॥
                                          (गीता १५ । १७,१९)

यहाँ भगवान्‌ने अव्यय’ स्वरूपके जाननेवालेको ‘असम्मूढ’‒ज्ञानवान् और सर्ववित् बतलाया है ।

अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं    मन्यन्ते   मामबुद्धयः ।
परं भावमजानन्तो         ममाव्ययमनुत्तमम् ॥
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥
                                            (गीता ७ । २४- २५)

इन श्लोकोंमें अव्यय’ स्वरूपके न जाननेवालेको बुद्धिहीन और मूढ कहा गया है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे