।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, गुरुवार
भगवान्से सम्बन्ध


(गत ब्लॉगसे आगेका)
भगवान् इतने विलक्षण हैं कि ‘आत्मारामगणाकषीं’ नाम है भगवान्का । जो ‘आत्मारामगण’ हैं, जो परमात्मस्वरूपमें ही नित्य रमण करते हैं, वे भी आकृष्ट हो जाते हैं भगवान्के गुणोंमें, भगवान्की लीलामें । भगवान्के गुण सत्त्व, रज, तम नहीं हैं । ‘आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्थाः’ दोनों अर्थ हुए‒एक तो चिज्जडग्रन्थी-भेदन हो गयी और ‘निर्ग्रन्था-शास्त्रमस्मान्निवर्तन्ते’ जिससे ग्रन्थ भी निवृत्त हो जाते हैं फल दे करके । ग्रन्थ अब क्या देगा ? ग्रन्थ तो मुक्ति देगा । वे मुक्त हो गये । निर्ग्रन्था हैं तो भी ‘उरूक्रमे कुर्वन्ति अहैतुकीं भक्तिम्’, बिना स्वार्थके, बिना मतलबके भक्ति करते हैं । क्यों करते हैं बिना मतलब ? ‘इत्थं भूतगुणो हरिः’ भगवान् ऐसे ही हैं । अब करें क्या ? उस तरफ वे आकृष्ट हो जाते हैं । तो वे ऐसे गुण हैं, ऐसी उनकी लीला । जिनको ‘निवृत्ततर्ष’ कहते हैं वे भी गाते रहते हैं, वे भी लीला करते रहते हैं ।

‘हरिश्शरणमित्येव येषां मुखे नित्यं वचः’ उनका वचन ही यह है ‘हरिः शरणम्’ शरण, आश्रय हमारा भगवान्का । तो वे क्या आश्रय लेंगे ? अब क्या लेना है उनको ? क्या मुक्ति करनी है ? क्या प्राप्त करना है ? ऐसा न होते हुए भी भगवान्में लगे रहते हैं । तो ऐसे सन्त-महापुरुष वे भगवान्की कथा सुनते हैं और सुनाते हैं । आपसमें कहते हैं तो उनके संगसे मात्र प्राणियोंका उद्धार होता है । जहाँ सत्संग-कथा होती है, वहाँ सब तीर्थ आ जाते हैं । जितने ऋषि-मुनि हैं वे सभी आ जाते हैं । गीताका पठन-पाठन होता है, वहाँ नारद, उद्धव आदि सब आ जाते हैं । तो उनके आनेसे वहाँका स्थल कितना पवित्र हो जाता है !

सतां प्रसंगान्मम वीर्यसंविदो भवन्ति हृत्कर्णरसायना कथाः ।
तज्जोषणादाश्वपवर्गवर्त्मनि श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति ॥

श्रेष्ठ पुरुषोंके संगसे भगवान्के प्रभावको वर्णन करनेवाली, भगवान्के प्रभावका ज्ञान करानेवाली, भगवान्के प्रभावको स्पष्ट बतानेवाली ‘हृत्कर्णरसायना कथाः’ हृदय और कानोंको रस देनेवाली कथा मिलती है । मानो कानोंमें ही श्रवणपुटसे पीते हैं, और हृदयमें प्रफुल्लित होते हैं, मस्त होते हैं । ऐसी आनन्द देनेवाली कथा होती है जहाँ, वहाँ श्रेष्ठ पुरुषोंके संगमें व्यापार ही वही है । उनके कथा-कीर्तन ही विषय हैं, उनका काम ही यह है । तो ऐसे वे कथा करते रहते हैं । ‘सतां प्रसंगान्मम वीर्यसंविदः, ‘भवन्ति हृत्कर्णरसायना कथाः । तज्जोषणात्’ उनके सेवन करनेसे ‘आशु अपवर्गवर्त्मनि’ परमात्माकी प्राप्तिका जो अपवर्ग रास्ता है उसमें श्रद्धा, रति, भक्ति, ‘अनुक्रमिष्यति’ सब हो जायगा । तो यह सबका सब हो जाता है । इस वास्ते भगवान् लीला करते हैं । वह लीला अवतार लिये बिना कैसे करे ? जिसको गा करके संसारके प्राणी अपना उद्धार कर सकें । 

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे