।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण अमावस्या, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
भगवान्से सम्बन्ध


(गत ब्लॉगसे आगेका)
वह लीला इसलिये करते हैं कि जिन सन्त-महात्माओंके लिये कुछ कहना-सुनना नहीं, वे भी कथा कहते हैं । ‘यत्राच्युतोदारकथानि सर्वाणि तीर्थानि निवसन्ति तत्र ।’ सब तीर्थ वहाँ निवास करते हैं । ‘यत्राच्युतोदारकथाप्रसंगः’ जहाँ भगवान्की उदार कथा होती है, वहाँ सब तीर्थ आ जाते हैं तो पवित्रताकी महान् पवित्रता हो जाती है वहाँ । ‘पवित्राणां पवित्रं यो मंगलाना च मंगलम्’ भगवान्को कहते हैं‒पवित्रोंका पवित्र, मंगलोंका मंगल । ऐसे भगवान्की कथा, उनके गुण, उनकी लीला, उनका स्वरूप, उनका तत्त्व इनका विवेचन जहाँ होता है, वहाँ वह प्रयागराज माना है । ‘सर्वाणि तीर्थानि निवसन्ति तत्र ।’

गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‒‘संत समाज प्रयाग’, जहाँ संत-संग होता है वहाँ प्रयागराज है । और कहते हैं‒

राम  भक्ति  जहँ  सुरसरि  धारा ।
सरसइ    ब्रह्म   बिचार  प्रचारा ॥
बिधि निषेधमय  कलिमल हरनी ।
करम  कथा   रबिनदनि   बरनी ॥

जैसे त्रिवेणी है प्रयागराजमें तो भगवान्की भक्ति तो गंगाजीकी धारा है । और ‘बिधि निषेधमय कलिमल हरनी’ यह यमुनाजी है । यमुनाजीका जल काला है और गंगाजीका जल स्वच्छ सफेद है तो भक्तिमें स्वच्छता दीखती है । विधि-निधेषमय; करनी काली दिखती है यह यमुनाजी है । सरस्वती क्या है ? भीतर-ही-भीतर चलती है । ‘सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा जहाँ ब्रह्मका विचार-विवेचन होता है तो हर एक आदमी समझता ही नहीं । वह अन्तःसलिला सरस्वती है । जहाँ तीनों ही चलती हैं, वह त्रिवेणी है ज्ञान, भक्ति और कर्मकी । इस वास्ते कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग हैं । जहाँ समतामें स्थित हुए तो योग हो जाता है । और जहाँ योग (समता) नहीं, वहाँ केवल कर्म, भक्ति, ज्ञान रहते हैं; परन्तु यदि उनका सम्बन्ध भगवान्के साथ ही होता है तो वह योग होता है । ऐसे कथा चलती है तो भगवान्की कथामें त्रिवेणी आ जाती है । प्रयागराज आ जाता है और जितने पार्षद हैं, वे आ जाते हैं । नारद आदि भक्त आ जाते हैं । ‘पुष्करादि सरांसि च’ वे आ जाते हैं । सब भगवान्की कथामें आ जाते हैं । तो भगवान्की कथा, भगवान् अवतार लेकर आते हैं, तब न करते हैं सभी । भगवान्का भक्तोंकी रक्षा करनेका तात्पर्य है भक्तोंके धनकी रक्षा करना । भक्तोंका धन क्या है ? भक्तोंका धन भगवान् हैं । भगवान्की बात चले वही उनकी रक्षा है और यही उनको धनी रहने देना है । उनका धन बढ़ाना है । उनकी रक्षा करनी है सब तरहसे । और दुष्टोंका विनाश क्या है ? दुष्टताका विनाश करना शरीरके साथ वैर नहीं है भगवान्का ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे