।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७२, बुधवार
नागपंचमी
भगवान्से सम्बन्ध


(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रह्लादजीकी रक्षाके लिये प्रकट हुए । उस हिरण्यकश्यपको नखोंसे चीर दिया । भीतरमें पेटकी आतें थीं, वे गलेमें डाल लीं । फिर उसके पेटके भीतर खोजते हैं । महाराज क्या खोजते हो ? कोई प्रह्लाद मिल जाय, इससे प्रह्लाद प्रकट हुआ है, पैदा हुआ है । संतान पहले पितामें फिर माँमें आता है, आता है न ? इस वास्ते कोई मिल जाय भक्त । ठाकुरजीके बहुत लोभ है । किसी तरहसे कोई भक्त मिल जाय । एक बात बतावें, आप ध्यान देकर सुनें । आजकल भगवान्के घाटा बहुत ज्यादा है । सत्य, त्रेता, द्वापरमें भक्त होते थे, पर आजकल भगवान् निकम्मे बैठे हैं । कोई पूछता नहीं । किसी यूनिवर्सिटी या संस्थामें विद्यार्थी अधिक परीक्षामें बैठते हैं तो (प्रथम श्रेणी) एक नम्बर पाना मुश्किल और परीक्षामें विद्यार्थी कम बैठे हों तो मामूली विद्यार्थीको फेल कर दें तो संस्था चलनी हो जाय मुश्किल । कोई नहीं निकले । तो इस वास्ते जैसा भी हो उसे पास करो, क्योंकि अपनी संस्था मिट जायगी । अभी भगवान्के यहाँ बहुत जल्दी आदमी पास होते हैं थोड़ी भक्तिमें ही । भगवान् सोचते हैं कि अभी कलियुगमें भक्त कम हैं । इस वास्ते जल्दी करो पास, इनको ठीक करो । अभी मौका बहुत बढ़िया आया है । ऐसा मौका हरदम नहीं मिलता । ऐसे मौकेमें हम लग जायँ तो अपना तो काम बन जायगा । इस वास्ते रात-दिन लग जायें नाम-जपमें, कीर्तनमें, कथा सुननेमें, कहनेमें, पढ़नेमें । रात-दिन इसमें ही लग जायें । अरे भाई ! पैसे बहुत कमाये हो, भोग बहुत भोगे हो, तो भी इनसे तृप्ति होनेवाली है नहीं; क्योंकि आप हो परमात्माके अंश और ये हैं जड़ प्रकृतिके अंश । चेतनकी भूख जड़से कैसे मिटेगी ? कितना ही कमा लो, कितना ही भोग भोग लो, पर भूख नहीं मिटेगी और चिन्मय परमात्मतत्त्वको प्राप्त हो जाय तो भूख रहेगी ही नहीं ।

‘कोयला हो नहीं उजला सौ मन साबुन लगाय’ कोयलेको कोई साफ, स्वच्छ करना चाहे तो सौ मन साबुन लगा दे तो क्या स्वच्छ हो जायगा ? कालापन मिट जायगा क्या उसका ? नहीं मिटेगा । तो फिर उपाय क्या है ? आगमें रखते ही चमक उठेगा । यह जीव कोयला बन गया भगवान्से विमुख होनेसे । अब उपाय करता है, साबुन लगाता है कि धन कमा लेंगे, भोग भोग लेंगे, यश हो जायगा । हमारा मान हो जायगा । हम यह करेंगे, पर कालापन तो मिटेगा नहीं बाबा ! कितना ही साबुन लगाओ ! कितना ही धोओ ! कितना ही करो ! क्या कर लोगे ? बताओ ! अब कोयला सफेद हो जायगा क्या ? ऐसे आप उपाय करते हैं जितना-जितना, उतना-उतना अलग हो जायगा और उलझ जायगा । सुलझानेके लिये ज्यों-ज्यों चेष्टा करता है, त्यों-त्यों अधिक उलझता है

एकस्य दुःखस्य न यावदन्तं  गच्छाम्यहं पारमिवार्णवस्य ।
तावद् द्वितीयं समुपस्थितं मे छिद्रेष्वनर्था बहुली भवन्ति ॥

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे