।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल षष्ठी, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
भगवान्से सम्बन्ध


(गत ब्लॉगसे आगेका)
आप हैं अविनाशी । अविनाशीको नाशवान् कैसे संतुष्ट करेंगे ? परन्तु वहम इतना विलक्षण पड़ा है‘राम-राम-राम ।’ कई बार भोगोंको भोगकर देख लिया फिर भी उधर ही जाते हैं । अब क्या मनमें रह गयी ? क्या बाकी रह गया ? वहम है कि अब सुख हो जायगा । आप नये हो गये कि पदार्थ नये हो गये, कि रिवाज नया हो गया ? क्या बात है ? अभीतक चेत नहीं हुआ । समझदार आदमी चेत जाता है कि रास्ता ठीक नहीं है । जो गया, वह भी इस तरहसे ही मार खाता है । जो गया, वो ही दुःख पाया । अब उस मार्गको तो छोड़ो भाई ! अपने भी कर लिया । इतने दिन हो गये, इतने वर्ष हो गये । और कौन-सा भोग नहीं भोगा ? और फिर क्या मनमें रह गयी भगवान् ही जाने !

चेत होना चाहिये । छोटे-छोटे बच्चे होते हैं, तब उनके विचार होता है कि हम यह करेंगे वह करेंगे । बड़े होकर ऐसा धन कमायेंगे । तो आप लोग बड़े कब होंगे, जिस दिन भजन करेंगे ? कब भगवान्में लगेंगे ? कुछ बड़े हो जायँ तो फिर करेंगे । अब कब बड़े होंगे ? बताओ । मूर्खता रखते-रखते ही मर जायेंगे, वही बचपन, वही मूर्खता । तो ठाकुरजीमें आप अपना मन लगा दो । सम्बन्ध जोड़ दो, किसी रीतिसे जोड़ दो । ठाकुरजीके साथ जोड़ लो । अब आप भगवान्को कुछ मान लो । कैसे ही मान लो । वैरी मान लो, चाहे भयभीत हो जाओ । सम्बन्ध तो जोड़ो प्रभुके साथ !


भगवान् इतनी निगरानी रखते हैं जीवमात्रकी । यह किसीके साथ सम्बन्ध जोड़ लेता है तो रहने नहीं देते । भगवान् तोड़ ही देंगे उसको । बालकपनके साथ रहे तो बालकपन तोड़ दिया । जवानीके साथ रहे तो जवानी तोड़ देंगे । वृद्धावस्थाका साथ किया तो वृद्धावस्था तोड़ देंगे । रोगी-नीरोगी अवस्थाके सम्बन्धको तोड़ देंगे । भगवान् कहते हैं कि मेरेको नहीं प्राप्त किया तो टिकने नहीं दूँगा तेरेको । तू चाहे कितना ही कुछ पकड़ ले, कितनी ही उछल-कूद करे तो क्या होगा ? यह सब परिस्थिति बदलती है तो यह भगवान्का आवाहन होता है कि इधर आओ, किधर जाते हो ? ये सुनते ही नहीं । थोड़ा धन और कमा लें, थोड़ी विद्या और पढ़कर विद्वान् बन जायें । वक्ता बन जायँ बढ़िया, लोग हमको वाह-वाह कहें । तो फँस जाओगे बाबा ज्यादा । क्या निकालोगे इसमें ? पर वह भ्रम पड़ा हुआ है कि मौज हो जायगी ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे