।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७२, रविवार
भगवान्से सम्बन्ध


(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक भौंरा था । वह घूमते-घूमते कमलमें जा बैठा । सुगन्ध आ रही थी खूब । इधर सूर्य अस्त हो गया तो कमल बन्द हो गया । उसमें भौंरा विचार करता है कि हम बन्द हो गये अब । इसमेंसे निकलें कैसे ? कमलको कैसे काटें ? भौंरा बाँसको काट देता है । बाँसमें छेद कर देता है । उसमें छेद बनाकर बच्चे देता है और भीतर रहता है । आप विचार करो, कमलकी पंखुड़ी काटनेमें उसे जोर आता है क्या ? परन्तु उससे सुगन्ध लेता है तो अब काटे कैसे ? वह भौंरा सोचता है‘रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम् ।’ रात चली जायगी, बड़ा सुन्दर प्रभात हो जायगा । ‘भास्वानुदेष्यति’ सूर्य भगवान् उदय होंगे और ‘हसिष्यति पंकजश्रीः’यह कमलकी शोभा खिल जायगी । फिर मर्जी आवे जहाँ बैठें, मर्जी आवे जहाँ जावें । फिर ठीक हो जायगा । ‘इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे’वह बेचारा विचार कर रहा है कि यह हो जायगा, यह हो जायगा । इतनेमें ही हाथी आता है । पानी पीता है, फिर सूँडसे कमलोंको ऐसे लपेटता है । उतनेमें वह तो मर जाता है । ‘हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार’ऐसे ही मनुष्य कहता है, ऐसे करेंगे, ऐसे करेंगे । क्या करेंगे ? राम नाम सत् हैयह तो आ ही जायगा ।

सज्जनो ! हम मृत्युलोकमें बैठे हैं । यहाँ मरनेवाले रहते हैं सब । सबलोग मरने-ही-मरनेवाले रहते हैं । इसमें निश्चिन्त बैठे हैं । मरना सुनते हैं तो बुरा लगता है । मरनेकी बात बुरी लगती है । कोई कह दे तो, कहते हैं ना-ना मुँहसे थूक । ऐसा मत बोलो । अब बोलो, चाहे मत बोलो, मरोगे तो सही । न बोलनेसे क्या रक्षा हो जायगी ? खरगोश होता है न, तो जब शिकारी उसे मारने जाता है तो वह छिपकर आँखें मीच लेता है । समझता है कि अब मेरेको कोई नहीं देखता; क्योंकि खुदको दीखता नहीं । आँखोंको तूने मीची है, दुनियाने थोड़े ही मीच ली है, पर वह तो यही समझता है कि अब थोड़े ही दीखूँगा मैं । ऐसे मनुष्य विचार करता है कि हमारा कौन कुछ करता है ? आँखें तूने मीची है भाई ! काल भगवान्ने मीची नहीं है आँखें । ये सूर्य भगवान् सबको देखते हैं । देखनेका काम ये करते हैं और ले जानेका काम इनके बेटा करते हैं । यमराज इनके बेटा हैं । सूर्य भगवान् देख लेते हैं कौन कैसे-कैसे तैयार हुआ है । हाँ बेटा, उसे ले आओ । तैयार है, बस । अपने निश्चिन्त बैठे हैं, ऐसे नहीं सोचते कि वे हमारेको देख रहे हैं । छिप आप सकते नहीं । समय होनेपर छोड़ेंगे नहीं ।

संतदास  संसारमें    बडो   कसाई   काल ।
राजा गिणे न बादशाह बूढ़ो गिणे न बाल ॥

न वह बूढ़ेको गिनता है, न बालकको गिनता है । बादशाह, साधु सब एक समान, आ जाओ बस ! आप कितने ही अच्छे पण्डित हो गये । बड़े अच्छे पण्डित हो, चाहे मूर्ख हो, यहाँ तो एक ही भाव है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे