।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
श्रावण कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
गीताके प्रत्येक अध्यायका तात्पर्य


(गत ब्लॉगसे आगेका)
तेरहवाँ अध्याय

संसारमें एक परमात्मतत्त्व ही जाननेयोग्य है । उसको जरूर जान लेना चाहिये । उसको तत्त्वसे जाननेपर जाननेवालेकी परमात्मतत्त्वके साथ अभिन्नता हो जाती है ।

जिस परमात्माको जाननेसे अमरताकी प्राप्ति हो जाती है, उस परमात्माके हाथ, पैर, सिर, नेत्र, कान सब जगह हैं । वह सम्पूर्ण इन्द्रियोंसे रहित होनेपर भी सम्पूर्ण विषयोंकी प्रकाशित करता है, सम्पूर्ण गुणोंसे रहित होनेपर भी सम्पूर्ण गुणोंका भोक्ता है, और आसक्तिरहित होनेपर भी सबका पालन-पोषण करता है । वह सम्पूर्ण प्राणियोंके बाहर भी है और भीतर भी है तथा चर-अचर प्राणियोंके रूपमें भी वही है । सम्पूर्ण प्राणियोंमें विभक्त रहता हुआ भी वह विभागरहित है । वह सम्पूर्ण ज्ञानोंका प्रकाशक है । वह सम्पूर्ण विषम प्राणियोंमें सम रहता है, गतिशील प्राणियोंमे गतिरहित रहता है, नष्ट होते हुए प्राणियोंमे अविनाशी रहता है । इस तरह परमात्माको यथार्थ जान लेनेपर परमात्माको प्राप्त हो जाता है ।

चौदहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण संसार त्रिगुणात्मक है । इससे अतीत होनेके लिये गुणोंको और उनकी वृत्तियोंको जरूर जानना चाहिये ।

प्रकृतिसे उत्पन्न सत्त्व, रज और तमये तीनों गुण शरीर-संसारमें आसक्ति, ममता आदि करके जीवात्माको बाँध देते हैं । सत्त्वगुण सुख और ज्ञानकी आसक्तिसे, रजोगुण कर्मोंकी आसक्तिसे और तमोगुण प्रमाद, आलस्य एवं निद्रासे मनुष्यको बन्धनमें डालता है । रजोगुण और तमोगुणको दबाकर जब सत्त्वगुण बढ़ता है, तब अन्तःकरणमें रज-तमके विरुद्ध प्रकाश हो जाता है । सत्त्वगुण और तमोगुणको दबाकर जब रजोगुण बढ़ता है, तब अन्तःकरणमें लोभ; क्रियाशीलता आदि सत्त्व-तमके विरुद्ध वृत्तियाँ बढ़ जाती है । सत्त्वगुण और रजोगुणको दबाकर जब तमोगुण बढ़ता है, तब अन्तःकरणमें अविवेक, कर्म करनेमेंमें अरुचि, प्रमाद, मोह आदि सत्त्व-रजके विरुद्ध वृत्तियाँ बढ़ जाती हैं । इन गुणोंकी वृत्तियोंके बढ़नेपर मरनेवाला प्राणी क्रमशः ऊँचे, मध्य और नीचेके लोकोंमें जाता है । परन्तु जो इन गुणोंके सिवाय अन्यको कर्ता नहीं मानता अर्थात् सम्पूर्ण क्रियाएँ गुणोंमें ही हो रही हैं, स्वयंमे नहींऐसा अनुभव करता है, वह गुणोंसे अतीत होकर भगवद्भावको प्राप्त हो जाता है । अनन्यभक्तिसे भी मनुष्य गुणोंसे अतीत हो जाता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे