।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७२, गुरुवार
पद्मा एकादशी-व्रत, श्रीवामनद्वादशी-व्रत
पराधीनता और स्वाधीनता


हमलोग सोचते हैं कि हमारे पास पैसा न होनेसे हम पराधीन हैं । यदि रुपये हो जायँ तो हम स्वाधीन हो जायँ । क्योंकि बिना रुपयोंके जिस चीजको हम खरीदना चाहते हैं, खरीद नहीं सकते । यदि रुपया हो जाय तो हम जो कोई भी चीज खरीदना चाहें तो खरीद लें । परन्तु इसे ठीक प्रकारसे समझना है । यदि आप रुपयोंसे चीज खरीद लेते हैं तो आप स्वाधीन कहाँ हुए ? आप रुपयोंके आधीन हुए । रुपये ‘पर’ हैं ‘स्व’ नहीं, अतः पराधीन हुए । रुपयोंके आधीन रहकर आपको स्वाधीनताका अनुभव होता है, यह गलती है । जैसे रुपयोंके अभावमें पराधीनता है, ऐसे ही रुपयोंके रहते हुए भी पराधीनता है । पहले रुपये नहीं थे वह दुःख था । अब रुपये खर्च हो जायँगे; यह दुःख है । फर्क इतना ही है कि रुपयोंके न रहनेपर पराधीनताका अनुभव होता है, परन्तु रुपयोंके आनेपर ऐसी अंधेरी आती है कि पराधीनताका अनुभव नहीं होता । जिसको पराधीनताका अनुभव होता है, वह पराधीनतासे रहित अर्थात् स्वाधीन हो सकता है । पर जो पराधीन हो और पराधीनताका अनुभव न करता हो, वह स्वाधीन नहीं हो सकता । जबतक आपको प्रकृतिसे उत्पन्न होनेवाले प्राकृत पदार्थोंकी चाहना है तबतक आप बिलकुल पराधीन हैं । क्योंकि ये प्राकृत पदार्थ रुपया, धन, शरीर आदि आने-जानेवाले उत्पन्न और नष्ट होनेवाले हैं । परन्तु आप रहनेवाले हैं । आप शरीरके उत्पन्न होनेसे पहले भी थे, अब भी हैं और शरीर नष्ट होनेपर भी रहेंगे । अतः यदि आप शरीर, इन्द्रियों, अन्तःकरण आदिके आधीन नहीं होंगे तभी आप स्वाधीन होंगे । इनके आधीन होना तो पराधीन होना है । परमात्मा स्वहै । आप और परमात्मा दोनों रहनेवाले हैं । यदि आप परमात्माके आधीन हो जायँ, उनकी शरण हो जायँ तो स्वाधीन हो जायँगे । क्योंकि परमात्मा ‘स्व’ हैं, अपने हैं । यदि हम प्रभुकी शरण हो जायँ, उनके परायण हो जायँ तो वे कहते हैं

‘मैं भगतन को दास भगत मेरे मुकुट मणि’

भगवान् आपको मालिक बना लेते हैं । अर्जुन भगवान्को कहते हैं कि मेरे रथको दोनों सेनाओंके बीचमें खड़ा कीजिये‒

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथ स्थापय मेऽद्युत ॥
                                               (गीता १ । २१)

भगवान् उसकी आज्ञाका पालन करते है । आप भगवान्के आधीन हो जाते हैं । परन्तु ये रुपये-पैसे जिनके लिये आप झूठ, कपट, बेईमानी, जालसाजी सब कुछ करते हैं, वे जाते समय आपसे पूछेंगे नहीं कि हम जा रहे हैं । चुपके-से खिसक जायँगे । कोई लिहाज नहीं करेंगे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‘जीवनका सत्य’ पुस्तकसे