।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७२, मंगलवार
एकादशी-व्रत कल है (सबका)
अभिमान और अहंकारका त्याग सम्भव है


निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति ॥
                                                 (गीता २ । ७१)

निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी ॥
                                                 (गीता १२ । १३)

अहंकार  बलं  दर्पं   कामं  क्रोध  परिग्रहम् ।
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥
                                                (गीता १८ । ५३)

इन श्लोकोंमें भगवान्ने अहंता-ममता अर्थात् मैं और मेरेपनसे रहित होनेकी बात कही है । इससे सिद्ध होता है कि अहंता-ममताका त्याग हो सकता है । अगर यह बात सम्भव न होती तो भगवान् यह बात न कहते । भगवान्ने कहा है तो इसका अर्थ है कि इनका त्याग अवश्य हो सकता है । त्याग उसीका हो सकता है जो वास्तवमें नहीं होता । वास्तविकका त्याग नहीं होता । जैसे यदि अग्निसे उष्णता या प्रकाशका त्याग करावें, तो कैसे त्याग करे ? सूर्य अपने प्रकाश या गर्मीका त्याग कैसे करें ? अहंता-ममता हमने बनायी है । इसको सन्तोंने माया कहा है । भगवान् रामने भी पंचवटीमें यही कहा है‒

मैं  अरु  मोर   तोर  तैं  माया ।
जेहि बस कीन्हे जीव निकाया ॥

मैं और मेरा, तू और तेरा यह माया है । इस मायामें ही संसार फँसा हुआ है । मायाका त्याग किया जा सकता है । अब विचार करना है कि मैं और मेरे-पनका त्याग कैसे हो ? पहले यह बात जँच जानी चाहिये कि इसका त्याग हो सकता है । दूसरी बात यह है कि यहमैं-पनमाना हुआ है, स्वयंका बनाया हुआ है । इस शरीरसे पहले मैं-पननहीं था, जन्मके बाद मैं-पनआया और शरीरके नाश होनेपर मैं-पननहीं रहेगा । बीचमें ही मैं-पनपैदा हुआ । इसी प्रकार बोरेमें पड़े आटेको और कनस्तरमें पड़े घीको कोई मैंनहीं कहता । पर जब वह पेटमें चला गया तो वह भी मैंहो गया । इसी प्रकार जब वह मैला-टट्टी बन गया तो मैं-पनमैलामें चला गया । वह मैला भी तो मैं ही था । परन्तु अब उसे मैंकहते हैं क्या ? ऐसे ही मानो हाथ या पैर सड़ जाय, डाक्टर उसे काट दे तो उस मैंको आप फेंक देते है । ऐसे ही मर जानेके बाद शरीर यहीं पड़ा रह जाता है और जला देते हैं । जरा भी दया नहीं आती । अगर शरीरमैंहोता तो या तो शरीरको भी अपने साथमें ले जाते अथवा शरीरके साथ हम भी रहते । परन्तु ऐसा नहीं होता । शरीरी चला जाता है और शरीर यहीं पड़ा रह जाता है । यह इसलिये है कि इस शरीरमेंमैं-पनमाना हुआ है और संसारमें मेरापन माना हुआ है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‘जीवनका सत्य’ पुस्तकसे