।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, रविवार
चतुर्दशी-श्राद्ध
कारागार‒एक शिक्षालय
(नागपुरके कारागारमें किया गया एक प्रवचन)


(गत ब्लॉगसे आगेका)

आजकल टैक्स बहुत बढ़ जानेसे लोग व्यापार आदिमें चोरी-छिपाव करते हैं । जैसे-जैसे वकील सिखाता है, वैसा-वैसा करके वे धन बचानेकी चेष्टा करते हैं । वे विचार ही नहीं करते कि इस प्रकार धन बचानेसे अन्तःकरण कितना मैला हो जायगा ! एक संत कहा करते थे कि शुद्ध कमाईके धनसे बहुत पवित्रता आती है । उनके पास एक राजा आया करते थे । एक बार राजाने उनसे पूछा कि ‘महाराज, आपके यहाँ बहुत-से लोग आया करते हैं और आप भी कई लोगोंके घरोंमें भिक्षाके लिये जाया करते हैं । ऐसा कोई घर आपकी दृष्टिमें है, जिसका अन्न शुद्ध कमाईका हो ? अगर ऐसा घर आपको दीखता है तो बतायें ।’ सन्तने कहा कि ‘अमुक स्थानपर एक बूढ़ी माई रहती है । उसके घरका अन्न शुद्ध है । वह ऊनको कातकर उससे अपनी जीविका चलाती है । उसके पास धन नहीं है, साधारण घास-फूसकी कुटिया है; परंतु वह पराया हक नहीं लेती, इस कारण उसका अन्न शुद्ध है ।’ ऐसा सुनकर राजाके मनमें आया कि उसके घरकी रोटी मिल जाय तो बड़ा अच्छा है ! राजा स्वयं एक भिखारी बनकर उसके घर पहुँचा और बोला‒‘माताजी ! कुछ भिक्षा मिल जाय ।’ वह बूढ़ी माई भीतरसे रोटी लायी और बोली‒‘बेटा ! यह रोटी ले लो ।’ तब राजाने पूछा‒‘माताजी, एक बात बताओ कि यह रोटी शुद्ध है न ? इसमें पराया हक तो नहीं है ? तो वह बोली‒‘देख बेटा, बात यह है कि यह पूरी शुद्ध नहीं है, इसमें थोड़ा पराया हक आ गया है ! एक दिन रातमें बारात जा रही थी । बारातमें जो गैस-बत्तियाँ थीं, उनके प्रकाशमें मैंने ऊन ठीक की थी‒इतना इसमें पराया हक आ गया है । इसके सिवाय मेरी कमाईमें कोई कसर नहीं है ।’ राजाने बड़ा आश्चर्य किया कि इतनी-सी कमीका भी इतना खयाल है ! दूसरेके उस प्रकाशमें हमारा क्या अधिकार है कि उसमें हम अपनी ऊन ठीक करें ?

इस तरह ये चार बातें हुईं‒पहली, समय बर्बाद न करना, उसको उत्तम-से-उत्तम काममें लगाना; दूसरी, जो काम करें, उसमें अपनी जानकारी-होशियारी बढ़ाते रहना; तीसरी, अपने शरीरके निर्वाहके लिये थोड़े खर्चेकी आदत बना लेना और चौथी, पराया हक न लेना । ये चार बातें जिसमें होती हैं, उसको लोग बहुत चाहते हैं । अगर वह नौकरी करना चाहेगा, तो उसको नौकरी जरूर मिल जायगी । ये जो बड़े-बड़े व्यापार करनेवाले सेठ होते हैं, वे प्रायः झूठ-कपट करते हैं, सरकारको धोखा देते हैं, बही भी दूसरी बना देते हैं और वक्तपर विश्वासघात भी कर लेते हैं; परन्तु वे भी यह नहीं चाहते कि हमारा मुनीम हमारे साथ झूठ-कपट करे, हमारेको धोखा दे, हमारे साथ विश्वासघात करे । वे चाहते हैं कि हमें ईमानदार अच्छा नौकर मिले । बेईमान आदमी भी ईमानदार नौकर चाहते हैं और ईमानदार आदमी भी ईमानदार नौकर चाहते हैं । काम करनेवाला सच्चा और ईमानदार आदमी मिले‒इसकी भूख सबको रहती है ।

एक विधवा बहन मिली । उसके ससुरालवालोंने सब रुपये-गहने ले लिये, उसको दिये नहीं । वह कहती थी कि ‘मेरा खर्चा ही क्या है, दो हाथके बीचमें एक पेट है ! लोग अपने पूरे कुटुम्बका पालन करते हैं, मेरा तो एक पेट है; न लड़का, न लड़की । एक मैं हूँ और दो हाथ हैं मेरे पास । मुझे क्या कमी है ?’ जो कम खर्चा करता है, थोड़े ही खर्चेमें अपना काम चलाता है, उसके मनमें बड़ा उत्साह रहता है । उस उत्साहसे वह कमाकर खाता है, तो उसका चित्त खूब प्रसन्न रहता है । परन्तु पराया हक लेनेसे चित्त शुद्ध नहीं होता । दूसरोंका हक लेनेवाला बाहरसे चाहे धनी बन जाय, चाहे खा-पीकर पुष्ट हो जाय, पर वह निर्भय नहीं हो सकता । जिसने किसीका कोई हक लिया ही नहीं, उसको भय किस बातका ? वह तो निर्भय, निःशंक रहता है । उसको कभी कष्ट नहीं पाना पड़ता । इस तरह आप भी अपना जीवन निर्मल बनायें । इन चारों बातोंको काममें लायें । इससे आपका अन्तःकरण निर्मल होगा । इसके सिवाय जिनमें आपकी श्रद्धा है, उन संतोंकी पुस्तकें पढ़ें और उनके अनुसार अपना जीवन बनायें ।
नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे