।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७२, मंगलवार
शारदीय नवरात्रारम्भ, मातामह श्राद्ध
गीता-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्नशरीरी (जीवात्मा) अविनाशी है, इसका विनाश कोई कर ही नहीं सकता (२ । १७) यह न मारता है और न मारा जाता है (२ । १९) तो फिर मनुष्यको प्राणियोंकी हत्याका पाप लगना ही नहीं चाहिये ?

उत्तर‒पाप तो पिण्ड-प्राणका वियोग करनेका लगता है; क्योंकि प्रत्येक प्राणी पिण्ड-प्राणमें रहना चाहता है, जीना चाहता है । यद्यपि महात्मालोग जीना नहीं चाहते, फिर भी उन्हें मारनेका बड़ा भारी पाप लगता है; क्योंकि उनका जीना संसारमात्र चाहता है । उनके जीनेसे प्राणिमात्रका परम हित होता है, प्राणिमात्रको सदा रहनेवाली शान्ति मिलती है । जो वस्तुएँ प्राणियोंके लिये जितनी आवश्यक होती हैं, उनका नाश करनेका उतना ही अधिक पाप लगता है ।

प्रश्नआत्मा नित्य है, सर्वत्र परिपूर्ण है, स्थिर स्वभाववाला है (२ । २४), तो फिर इसका पुराने शरीरोंको छोड़कर दूसरे नये शरीरोंमें चला जाना कैसे सम्भव है (२ । २२) ?

उत्तर‒जब यह प्रकृतिके अंश शरीरको अपना मान लेता है, उसके साथ तादात्म्य कर लेता है, तब यह प्रकृतिके अंशके आने-जानेको, उसके जीने-मरनेको अपना आना-जाना, जीना-मरना मान लेता है । उसी दृष्टिसे इसका अन्य शरीरोंमें चला जाना कहा गया है । वास्तवमें तत्त्वसे इसका आना-जाना, जीना-मरना है ही नहीं ।

प्रश्नभगवान्‌ कहते है कि क्षत्रियके लिये युद्धके सिवाय कल्याणका दूसरा कोई साधन है ही नहीं (२ । ३१), तो क्या लड़ाई करनेसे ही क्षत्रियका कल्याण होगा, दूसरे किसी साधनसे कल्याण नहीं होगा ?

उत्तर‒ऐसी बात नहीं है । उस समय युद्धका प्रसंग था और अर्जुन युद्धको छोड़कर भिक्षा माँगना श्रेष्ठ समझते थे; अतः भगवान्‌ने कहा कि ऐसा स्वतःप्राप्त धर्मयुद्ध शूरवीर क्षत्रियके लिये कल्याणका बहुत बढ़िया साधन है । अगर ऐसे मौकेपर शूरवीर क्षत्रिय युद्ध नहीं करता तो उसकी अपकीर्ति होती है; वह आदरणीय, पूजनीय मनुष्योकी दृष्टिमें लघुताको प्राप्त हो जाता है; वैरी लोग उसकी न कहनेयोग्य वचन कहने लग जाते हैं (२ । ३४-३६) । तात्पर्य है कि अर्जुनके सामने युद्धका प्रसंग था, इसीलिये भगवान्‌ने युद्धको श्रेष्ठ साधन बताया । युद्धके सिवाय दूसरे साधनसे क्षत्रिय अपना कल्याण नहीं कर सकता‒यह बात नहीं है; क्योंकि पहले भी बहुत-से राजालोग चौथे आश्रममें वनमें जाकर साधन-भजन करते थे और उनका कल्याण भी हुआ है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे