।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७२, शनिवार
गीता-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्नगीतामें कहीं तो सात्त्विक, राजस और तामस गुणोंको भगवान्‌से उत्पन्न बताया गया है (७ । १२), कहीं प्रकृतिसे उत्पन्न बताया गया है (१३ । १९; १४ । ५) और कहीं स्वभावसे उत्पन्न बताया गया है (१८ । ४१), तो गुण भगवान्‌से उत्पन्न होते हैं या प्रकृतिसे उत्पन्न होते हैं अथवा स्वभावसे उत्पन्न होते हैं ?

उत्तरजहाँ भक्तिका प्रकरण है, वहाँ गुणोंको भगवान्‌से उत्पन्न बताया गया है; जहाँ ज्ञानका प्रकरण है, वहाँ गुणोंको प्रकृतिसे उत्पन्न बताया गया है; और जहाँ कर्म-विभागका वर्णन है, वहाँ गुणोंको स्वभावसे उत्पन्न बताया गया है ।

     भगवान्‌ सबके मालिक हैं । अतः मालिककी दृष्टिसे देखा जाय तो गुण भगवान्‌से पैदा होते हैं । सबकी उत्पत्तिका कारण प्रकृति है । अतः कारणकी दृष्टिसे देखा जाय तो गुण प्रकृतिसे पैदा होते है । व्यवहारकी दृष्टिसे देखा जाय तो गुण प्राणियोंके स्वभावसे पैदा होते हैं । तात्पर्य है कि ये गुण मालिककी दृष्टिसे भगवान्‌के हैं, कारणकी दृष्टिसे प्रकृतिके हैं और संसारमें अभिव्यक्तिकी दृष्टिसे व्यक्तियोंके हैं । अतः तीनों ही बातें ठीक हैं ।

प्रश्नजो अनेक जन्मोंसे सिद्ध हुआ है, अनेक जन्मोंसे साधन करता आया है, वही परमगतिको प्राप्त होता है (६ । ४५), तो फिर सभी मनुष्य अनेकजन्मसंसिद्ध न होनेसे इसी जन्ममें अपना उद्धार कैसे कर सकते हैं ?

उत्तरयह श्लोक योगभ्रष्टके प्रकरणमें आया है । पहले मनुष्यजन्ममें संसारसे उपराम होकर साधन करनेसे शुद्धि हुई, फिर अन्तसमयमें साधनसे विचलित होनेसे वह स्वर्गादि लोकोंमें गया तो वहाँ भोगोंसे अरुचि होनेसे शुद्धि हुई, और वहाँसे शुद्ध श्रीमानोंके घरमें जन्म लेकर परमात्मप्राप्तिके लिये यत्न करनेसे शुद्धि हुई । इस तरह उसका तीन जन्मोंमें शुद्ध होना ही अनेकजन्मसंसिद्ध होना है । परन्तु वास्तवमें देखा जाय तो मनुष्यमात्र अनेकजन्मसंसिद्ध है । अगर वह इस मनुष्यजन्मके पहले स्वर्गादि लोकोंमें गया है तो वहाँ स्वर्गप्रापक पुण्योंका फल भोगनेसे शुद्ध हुआ । अगर वह नरकोंमें गया है तो वहाँ नरकप्रापक पापोंका फल भोगनेसे शुद्ध हुआ । अगर वह चौरासी लाख योनियोंमें गया है तो वहाँ उन योनियोंके प्रापक पापोंका फल भोगनेसे शुद्ध हुआ । इस तरह शुद्ध होना ही प्रत्येक मनुष्यका अनेकजन्मसंसिद्ध होना है । अतः प्रत्येक मनुष्य अपना उद्धार, कल्याण कर सकता है । प्रत्येक मनुष्य भगवत्प्राप्तिका अधिकारी है । अगर वह अधिकारी नहीं होता तो भगवान्‌ यह मनुष्यशरीर ही क्यों देते ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे