।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७२, शुक्रवार
पंचमी-श्राद्ध, गाँधी-जयन्ती
वास्तविक सुख

 
(गत ब्लॉगसे आगेका)

वह उद्देश्य बनेगा, तभी ये पारमार्थिक बातें समझमें आयेंगी । अतः पूरा लाभ तभी होगा, जब उस लाभके लिये हम लग जाय । इसके लिये सबसे पहले यह विश्वास होना चाहिये कि ऐसा कोई लाभ है, जो प्रत्येक मनुष्यको मिल सकता है । उसकी प्राप्ति इस मनुष्य-जीवनमें हो सकती है, यह एकदम सच्ची बात है । कारण कि जितने बड़े-बड़े ऋषि हुए हैं, महात्मा हुए हैं, तपस्वी हुए हैं, त्यागी हुए हैं, जीवन्मुक्त हुए हैं, भगवान्के प्रेमी भक्त हुए हैं, उन सबको उस लाभकी प्राप्ति हुई है । जब मनुष्यमात्र उस तत्त्वको प्राप्त कर सकता है तो फिर हम क्यों नहीं कर सकते ? अगर आप उसकी प्राप्तिका लक्ष्य बना लें, तो फिर आपको दूसरी बातें बतायें । तब उन बातोंको आप जरूर समझ लोगे और आगे बढ़ जाओगे, इसमें संदेह नहीं है ।

आप ऐसा विचार न करें कि हम तो गृहस्थ हैं, हम तो कुटुम्बमें फँसे हुए हैं, हम उस तत्त्वको कैसे प्राप्त करेंगे आदि । मेरी धारणामें आप ऐसे अयोग्य नहीं हैं, अपात्र नहीं हैं, अनधिकारी नहीं हैं कि उस तत्त्वको प्राप्त नहीं कर सकते । मनुष्यमात्र उस तत्त्वको प्राप्त कर सकता है । मेरेको ऐसी-ऐसी अलौकिक युक्तियाँ सन्तोंसे मिली हैं, जिनसे मनुष्यमात्र अपना उद्धार कर सकता है, इसमें किंचिन्मात्र भी संदेह नहीं है । केवल आपको उधर दृष्टि डालनी है कि ऐसा एक तत्त्व है ।

आप थोड़े-से सुखमें, थोड़े-से लाभमें अटक जाते हो‒यही गलती है । कारण कि उससे पूर्णता तो होती नहीं, दुःख पाते रहते हैं और उससे सर्वथा ऊपर उठनेका विचार ही नहीं रहता । थोड़े-से लोभमें फँसकर महान् लाभसे वंचित रह जाते हैं, यही गलती है । इस गलतीको सुधार ले । उस महान् लाभकी भूख लगे तो इतनी तेजीसे लगे कि उसकी पूर्तिके बिना चैन न पड़े, तब उसकी प्राप्ति हो सकती है । परंतु जबतक उसका उद्देश्य नहीं होगा, तबतक बतानेपर भी विशेषतासे पकड़ नहीं सकोगे । निःसंदिग्धरूपसे आपको जँचेगी भी नहीं; क्योंकि वास्तवमें उस तरफ दृष्टि ही नहीं, तो फिर जँचेगी कैसे ?

यह बात तो आप सब-के-सब जानते ही हैं कि जो परिस्थिति मिली है, उससे संतोष नहीं होता और उससे पूर्णता भी नहीं होती । जितना धन मिला है, उस धनसे पूर्णता नहीं होती, प्रत्युत और धन मिले‒यह इच्छा रहती है । जितना मान, आदर, सत्कार, बड़ाई मिली है, जितनी नीरोगता मिली है, उससे पूरा संतोष नहीं; ‘और मिले’‒यह इच्छा रहती है । इस तरह कमीका अनुभव सब करते हैं । जब कमी है, तो ऐसी भी कोई चीज अवश्य है, जिससे उसकी पूर्ति होती है, बिलकुल कमी रहे ही नहीं‒ऐसी सबकी स्थिति हो सकती है, होती है और अनेकोंकी हुई है, तो फिर हमारी क्यों नहीं होगी ? हम भी उस तत्त्वको प्राप्त कर सकते हैं, बिलकुल सच्ची बात है । केवल हमारा विचार हो जाय कि हम उस तत्त्वको कैसे प्राप्त करें ? केवल तीव्र अभिलाषा हो जाय कि हमें वह तत्त्व कैसे मिले ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे