।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७२, बुधवार
श्रीदुर्गाष्टमी-व्रत, श्रीदुर्गानवमी-व्रत
गीता-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर


(गत ब्लॉगसे आगेका)


प्रश्नरजोगुणकी तात्कालिक वृत्तिके बढ़नेपर और रजोगुणकी प्रधानतामें मरनेवाला प्राणी मनुष्यलोकमें जन्म लेता है ( १४ । १५,१८)‒इन दोनों बातोंसे यही सिद्ध होता है कि इस मनुष्यलोकमें सभी मनुष्य रजोगुणवाले ही होते हैं, सत्त्वगुण और तमोगुणवाले नहीं । परंतु गीतामें जगह-जगह तीनों गुणोंकी बात भी आयी है (७ । १३; १४ । ६-१८; १८ । २०-४० आदि) । इसका क्या तात्पर्य है ?

उत्तरऊर्ध्वगति, मध्यगति और अधोगति‒इन तीनोंमें तीनों गुण रहते हैं; परंतु ऊर्ध्वगतिमें सत्त्वगुणकी, मध्यगति-(मनुष्यलोक-) में रजोगुणकी और अधोगतिमें तमोगुणकी प्रधानता रहती है । तभी तो तीनों गतियोंमें प्राणियोंके सात्त्विक, राजस और तामस स्वभाव होते हैं[*]

प्रश्नचौदहवें अध्यायके सत्रहवें श्लोकमें तमोगुणसे अज्ञानका पैदा होना बताया गया है और आठवें श्लोकमें अज्ञानसे तमोगुणका पैदा होना बताया गया है‒इसका क्या तात्पर्य है ?

उत्तर‒जैसे वृक्षसे बीज पैदा होता है और उस बीजसे फिर बहुतसे वृक्ष पैदा होते हैं, ऐसे ही तमोगुणसे अज्ञान पैदा होता है और उस अज्ञानसे तमोगुण बढ़ता है, पुष्ट होता है ।

प्रश्नअश्वत्थ-(पीपल-) के वृक्षको पूजनीय माना गया है, फिर भगवान्‌ने पन्द्रहवें अध्यायके तीसरे श्लोकमें संसाररूप अश्वत्थ-वृक्षका छेदन करनेकी बात क्यों कही है ?

उत्तरपीपल-वृक्ष सम्पूर्ण वृक्षोंमें श्रेष्ठ है । भगवान्‌ने उसको अपना स्वरूप बताया है (१० । २६) । औषधके रूपमें भी उसकी बड़ी महिमा है । उसकी जटाको पीसकर पी लेनेसे बन्ध्याकों भी पुत्र हो सकता है । पीपल सभीको आश्रय देता है । पीपलके नीचे सभी पेड़-पौधे पनप जाते हैं । पीपल किसीको बाधा नहीं देता, इसलिये पीपलको भी कोई बाधा नहीं देता, जिससे यह मकानकी दीवार और छतपर, कुएँ आदिमें, सब जगह उग जाता है । पीपल, बट, पाकर आदि वृक्ष यज्ञीय हैं अर्थात् इनकी लकड़ी यज्ञमें काम आती है । अतः भगवान्‌ने पीपलको संसारका रूपक बनाया है; क्योंकि संसार भी स्वयं किसीको बाधा नहीं देता । संसार भगवत्स्वरूप है । वास्तवमें अपने व्यक्तिगत राग-द्वेष, कामना, ममता आसक्ति आदि ही बाधा देते हैं । अतः भगवान्‌ने संसार-रूप पीपल-वृक्षका छेदन करनेकी बात नहीं कही है, प्रत्युत इसमें जो कामना, ममता, आसक्ति आदि हैं, जिनसे मनुष्य जन्म-मरणमें जाता है, उनका वैराग्यरूप शस्त्रके द्वारा छेदन करनेकी बात कही है ।

   (अपूर्ण)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे


[*] इस विषयको विस्तारसे समझनेके लिये गीताकी ‘साधक-संजीवनी’ हिंदी-टीकामें चौदहवें अध्यायके अठारहवें श्लोककी व्याख्या देखनी चाहिये ।