।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७२, गुरुवार
विजयादशमी

अच्छे बनो


अगर मनुष्य अपनी चीज (परमात्मा)-को अपनी मान ले, परायी चीज (शरीर-संसार)-को अपनी न माने तो बस, एकदम मुक्त हो जाय‒इसमें किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है । गीतामें जहाँ गुणातीत महापुरुषके लक्षण लिखे हैं, वहाँ ‘समदुःखसुखः स्वस्थः’ (१४ । २४) लिखा है, जो अपने-आपमें, अपनी जगह स्थित हो जाता है वह सुख-दुःखमें सम हो जाता है, मुक्त हो जाता है, यह जो दूसरेसे आशा रखना है, यह महान् कायरता है, बड़ी भारी निर्बलता है । यह कायरता, निर्बलता अपनी बनायी हुई है, मूलमें है नहीं । आप अपनी जगह बैठें, अपनी चीजको अपनी मानें, परायी चीजको अपनी न मानें‒इसमें निर्बलता, कठिनता क्या है ?

दूसरे लोग मेरेको क्या कहेंगे, क्या समझेंगे‒यह भय महान् अनर्थ करनेवाला है । इस भयको छोड़कर निधड़क हो जाना चाहिये । दूसरे खराब कहते हैं तो हम डरते हैं, तो क्या दूसरे खराब नहीं कहेंगे ? वे तो जैसी मरजी होगी, वैसा कहेंगे । हम भयभीत हों तो भी वे वैसा ही कहेंगे और भयभीत न हों तो भी वे वैसा ही कहेंगे । उनके मनमें जैसी बात आयेगी, वैसा कहेंगे वे । क्या हमारे भयभीत होनेसे वे हमारेको अच्छा कहने लग जायँगे ? यह सम्भव ही नहीं है । दूसरे क्या कहते हैं‒इसको न देखकर अपनी बातपर डटे रहो, अपने कामपर ठीक रहो, यह बहुत बड़े लाभकी बात है ।

अभी कल-परसोंकी बात होगी । एक प्रसंग चला तो मैंने कहा‒आपके निःशंक, निर्भय होनेमें एक ही बात है कि अगर आपको कोई खराब कहे तो आप अपनी दृष्टिसे अपनेको देखो कि मैंने तो कोई गलती नहीं की, न्यायविरुद्ध कोई काम नहीं किया । इस तरह अपनेपर जितना विश्वास कर सकें, दृढतासे जितना रह सकें उतना रह जाओ तो आपके सब भय मिट जायँगे । हमने जब कोई गलती नहीं की तो डर किस बातका ? अपने आचरणपर, अपने भावपर आप दृढ़ रहो । इससे बड़ा भारी बल मिलता है । उनके सामने तो मैंने यह भी कहा कि इसको मैंने करके देखा है । आप भी करके देख लो । हम जब ठीक हैं, सच्चे हैं, तो फिर भय किस बातका ? अपनेपर अपना विश्वास न होनेसे ही अनर्थ होते हैं । हम जब अपनी जगह बहुत ठीक हैं, हमारी नीयत ठीक है, कार्य ठीक है, विचार ठीक है, भाव ठीक है, तो फिर दूसरेसे कभी किंचिन्मात्र भी आशा मत रखो, इच्छा मत करो कि दूसरा हमें अच्छा समझे । दूसरेके बुरा समझनेसे भय मत करो । दूसरा कितना ही बुरा समझे, हम तो जैसे हैं, वैसा ही रहेंगे । अगर हम अच्छे नहीं हैं और सब लोग हमें अच्छा समझते हैं, तो क्या हमारा अच्छापन सिद्ध हो जायगा ?

श्रोता‒यदि अपनी गलती अपनेको नजर नहीं आये तो ?

स्वामीजी‒अपनी गलती अपनेको नजर नहीं आनेका कारण है‒स्वार्थ और अभिमान । स्वार्थ और अभिमानसे ऐसा ढक्कन लग जाता है कि अपनी गलती अपनेको नहीं दीखती । अतः स्वार्थ और अभिमान न करें । स्वार्थ और अभिमानका त्याग करनेसे बहुत प्रकाश मिलेगा और अपनी गलती दीखने लग जायगी ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘अच्छे बनो’ पुस्तकसे