।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७२, रविवार
मनुष्यकी तीन शक्तियाँ


मनुष्यमात्रमें तीन शक्तियाँ हैं‒करनेकी शक्ति, जाननेकी शक्ति और माननेकी शक्ति । कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं कह सकता कि मैं कुछ भी नहीं करता हूँ और करना चाहता भी नहीं हूँ; मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ और जानना चाहता भी नहीं हूँ; मैं कुछ भी नहीं मानता हूँ और मानना चाहता भी नहीं हूँ । मनुष्य करता भी है और करना चाहता भी है, जानता भी है और जानना चाहता भी है, मानता भी है और मानना चाहता भी है । अगर करना, जानना और मानना‒इन तीनोंके साथ योग’ लग जाय तो ये तीनों मुक्ति देनेवाले हो जायँगे । करनेमें योग होनेसे कर्मयोग’ हो जायगा, जाननेमें योग होनेसे ज्ञानयोग’ हो जायगा और माननेमें योग होनेसे भक्तियोग’ हो जायगा । योग तब होगा, जब समता होगी‒‘समत्वं योग उच्यते’ (गीता २ । ४८) समताका मतलब है‒राग-द्वेष, हर्ष-शोक न हो ।

एक विलक्षण बात है । ऐसा कोई मनुष्य है ही नहीं, जो साधन न कर सके, परमात्माकी तरफ न चल सके । साधन करना चाहता नहीं, परमात्माकी तरफ चलना चाहता नहीं‒यह बात अलग है । अगर वह चाहे तो साधन कर सकता है । मनुष्ययोनि साधनके लिये ही मिली है । यह साधनयोनि है, कर्मयोनि नहीं । दूसरी सब भोगयोनियाँ हैं ।

मनुष्यमें करनेकी एक शक्ति है, आग्रह है । ‘ऐसा करके फिर क्या करें’यह प्रश्र उठता है तो इससे मालूम होता है कि भीतरमें करनेका वेग है । करनेका यह वेग अपने लिये कर्म करनेसे मिटेगा नहीं, प्रत्युत बढ़ेगा । कुछ भी अपने लिये किया जायगा तो करनेका वेग बढ़ेगा । करना और पाना (यह करेंगे, इससे यह मिलेगा)‒ये दो चीजें रहेंगी तो कर्मयोग नहीं होगा, कर्म होगा । करना दूसरोंके लिये होगा तो करनेका वेग मिट जायगा अर्थात् करना बाकी नहीं रहेगा ।

संसारको जाननेसे जानना पूरा नहीं होगा । पढ़ाई करनेसे जानना पूरा नहीं होगा । जानना पूरा होगा स्वयंको जाननेसे । स्वयं मैं क्या हूँ‒इसको जबतक नहीं जानोगे, तबतक कितना ही जान लो, कितना ही अध्ययन कर लो, कितनी ही पढ़ाई कर लो, कितनी ही लिपियाँ और भाषाएँ सीख लो, कला-कौशल सीख लो, तरह-तरहके हुनर सीख लो, पर जानना बाकी रहेगा । अपने स्वरूपको ठीक तरहसे जान लो तो जानना बाकी नहीं रहेगा ।

संसारको, तरह-तरहकी चीजोंको मानते रहोगे तो मानना कभी पूरा नहीं होगा । मानना पूरा होगा परमात्माकी माननेसे । परमात्मा माननेका ही विषय है; क्योंकि माननेके सिवाय उसको जान नहीं सकते, देख नहीं सकते, सीख नहीं सकते । अतः परमात्मा है‒ऐसा दृढ़तासे मान लोगे तो मानना पूरा हो जायगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अच्छे बनो’ पुस्तकसे