।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, सोमवार
शरत्पूर्णिमा
मनुष्यकी तीन शक्तियाँ


(गत ब्लॉगसे आगेका)

माननेके साथ ज्ञानका विरोध न हो । संसार पहले नहीं था और आगे नहीं रहेगा तथा अभी भी प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है‒इसका हमें ज्ञान है । अतः संसारकी मान्यता ज्ञान-विरोधी है और नित्य रहनेवाली नहीं है । परमात्मा पहले भी था, आगे भी रहेगा और अभी भी है‒यह मान्यता नित्य रहनेवाली है । परमात्मा केवल माननेका, श्रद्धाका विषय है, तर्कका विषय नहीं है । तर्कका विषय वह होता है, जिसके विषयमें हम कुछ जानते हैं और कुछ नहीं जानते । परमात्माके विषयमें हम कुछ नहीं जानते, अतः उसको मानना ही पड़ता है । उसको मानें या न मानें‒इसमें आप स्वतन्त्र हैं । परमात्माको, सन्त-महात्माको, शास्त्रको‒इनको मानना ही पड़ता है । इस संसारका कोई आधार है, कोई आश्रय है; यह किसीसे उत्पन्न हुआ है, किसीके आश्रित है, किसीसे पालित है, किसीमें लीन हो जायगा‒इस प्रकार पहले उसको मानना पड़ेगा, फिर वह दीख जायगा ।

हमारेसे गलती यही होती है कि हम न तो करनेमें, न जाननेमें और न माननेमें दृढ़ होते हैं । इतनी दृढ़ता होनी चाहिये कि अगर परमात्मा खुद आकर कह दे कि तुम गलत हो, तो कह दे कि इसमें आपकी गलती है, मेरी गलती नहीं है; आप भूल गये होंगे, मैं नहीं भूला हूँ ! पार्वतीजीने कहा‒

जन्म कोटि लगि रगर हमारी ।
बरउँ संभु न त  रहउँ कुआरी ॥
तजउँ  न  नारद  कर  उपदेसू ।
आपु  कहहिं  सत्‌  बार महेसू ॥
                            (मानस, बाल ८१ । ३)

यह मान्यता है । मिलेंगे तो परमात्मासे मिलेंगे । हमें और किसीसे मिलनेकी जरूरत नहीं है । हमें न तो भोगोंकी जरूरत है, न संग्रहकी जरूरत है, हमें तो एक परमात्माकी जरूरत है । ऐसा मान लें तो बेड़ा पार हो जायगा । दूसरा कुछ करनेकी, जाननेकी जरूरत नहीं । केवल दृष्टतासे मान लो तो प्राप्ति हो जायगी, पूर्णता हो जायगी, कमी नहीं रहेगी । केवल माननेसे सब काम हो जायगा ।

अगर अपने-आपको ठीक-ठीक जान लो तो जानना पूरा हो जायगा । ठीक-ठीक जाननेमात्रसे बेड़ा पार हो जायगा । परन्तु अपने-आपको जाने बिना आप पृथ्वी और स्वर्ग-नरक-पाताल आदिकी कितनी ही बातें सीख लो, पर जानना बाकी रहेगा । ऐसे ही जबतक अपने लिये करोगे, तबतक चाहे कितना ही कर लो, ब्रह्मलोकतक चले जाओ, पर करना बाकी रहेगा । केवल दूसरोंके लिये करोगे तो करना बाकी नहीं रहेगा ।

तात्पर्य है कि दूसरोंके लिये करना’ है, अपनेको जानना’ है और परमात्माको मानना’ है । इन तीनोंमेंसे किसी एकमें भी दृढ़ता होनेपर तीनोंकी पूर्ति हो जायगी । चाहे कर लो, चाहे जान लो और चाहे मान लो । करनेका ज्यादा वेग हो तो कर लो, जाननेकी जिज्ञासा हो तो जान लो और माननेका स्वभाव हो तो मान लो । किसी एकपर भी दृढ़ हो जाओ तो करना, जानना और मानना कुछ भी बाकी नहीं रहेगा । दूसरोंके लिये करना कर्मयोग’ है, अपनेको जानना  ज्ञानयोग’ है और परमात्माको मानना भक्तियोग’ है । इनमेंसे किसी एकके पूरा होनेपर तीनों पूरे हो जायँगे । जब करना, जानना और पाना बाकी नहीं रहेगा, तब मनुष्यजीवन सफल हो जायगा ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘अच्छे बनो’ पुस्तकसे